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मुख़्तार अंसारी: अपराध और गैंगवार की दुनिया में उभार की कहानी

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Source :- BBC INDIA

मुख़्तार अंसारी

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21 मिनट पहले

उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में सज़ा काट रहे माफ़िया से बाहुबली नेता बने मुख़्तार अंसारी का दिल का दौरा पड़ने से गुरुवार शाम मृत्यु हो गई. यह जानकारी जेल प्रशासन ने दी है.

बांदा ज़िला जेल में बंद मुख़्तार अंसारी को गुरुवार की शाम रानी दुर्गावाती मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था.

मेडिकल बुलेटिन के अनुसार, “63 साल के मुख्तार अंसारी को जेल के सुरक्षाकर्मियों ने मेडिकल कॉलेज के इमर्जेंसी वॉर्ड में शाम 8.45 बजे भर्ती कराया था. उन्हें उल्टी की शिकायत और बेहोशी की हालत में लाया गया था.”

बुलेटिन में कहा गया है कि मरीज़ को नौ डॉक्टरों की टीम ने तत्काल मेडिकल सहायता उपबल्ध कराई लेकिन भरसक प्रयासों के बावजूद ‘कार्डियक अरेस्ट’ के कारण उनकी मृत्यु हो गई.

दो दिन पहले भी मंगलवार को उनकी तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उन्हें आईसीयू में रखा गया था.

गुरुवार शाम को जैसे ही मुख़्तार अंसारी की तबीयत बिगड़ने की ख़बर आई, ग़ज़ीपुर में उनके आवास पर लोग जमा होने लगे थे.

मृत्यु की पुष्टि होने के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में धारा 144 लगा दी गई और मुख़्तार अंसारी के गृह जनपद, मऊ समेत कई इलाक़ों में पुलिस सतर्कता बढ़ा दी गई.

उनके आवास के बाहर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अलीगढ़, फ़िरोज़ाबाद, प्रयागराज, कासगंज समेत राज्य के कई ज़िलों में पुलिस ने अर्द्धसैनिक बलों के साथ फ़्लैग मार्च किया.

मुख्यमंत्री आदित्यानाथ ने रात में ही एक उच्च स्तरीय बैठक भी बुलाई.

जताया था अपनी जान को ख़तरा

मुख़्तार अंसारी

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पिछले साल मुख़्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी ने अपने पिता की जान को ख़तरा होने का अंदेशा जताया था और सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.

अदालत में दी गई याचिका में कहा गया कि मुख़्तार अंसारी को भरोसेमंद जानकारी मिली थी कि उनकी जान को भारी ख़तरा है और उन्हें बांदा जेल में मारने की साज़िश है.

मुख़्तार अंसारी को फ़िरौती के मामले में साल 2019 से पंजाब की रूपनगर जेल में रखा गया था.

साल 2021 में उन्हें उत्तर प्रदेश की पुलिस बंदा लेकर आई. तबसे वो यहीं पर बंद थे.

कांग्रेस ने उनकी मौत पर सवाल उठाए हैं.

कांग्रेस नेता सुरेंद्र राजपूत ने कहा, “मुख़्तार अंसारी ने कुछ दिन पहले आरोप लगाया था कि उन्हें धीमा ज़हर दिया जा रहा है. और आज प्रशासन बता रहा है कि उनका दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए. हाई कोर्ट के मौजूदा जज की निगरानी में जांच होनी चाहिए ताकि पता चले लोगों को कि जेलों में क्या हो रहा है?”

समाजवादी पार्टी ने मुख़्तार अंसारी की मृत्यु पर दुख जताया है. सपा नेता अमीक जामेई ने मामले की विस्तृत जांच की मांग की है.

लखनऊ से बीबीसी संवाददाता अनंत झणाणें के मुताबिक रात में ही उनके भाई अफ़जाल अंसारी और बेटे उमर अपने रिश्तेदारों के साथ बांदा के लिए निकल पड़े.

रात में ही शव को पोस्टमॉर्टम के लिए बंदा मेडिकल कॉलेज हॉस्पीटल ले जाया गया. उनका शव ग़ाज़ीपुर में उनके पैतृक निवास ले जाया जाएगा.

हत्या मामले में काट रहे थे सज़ा

मुख़्तार अंसारी

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माफ़िया से राजनेता बने उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में मऊ से पाँच बार के विधायक चुने गए थे.

पिछले साल अप्रैल में मुख़्तार अंसारी को बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्या मामले में 10 साल की सज़ा सुनाई गई थी.

उनके भाई और ग़ाजीपुर से सांसद रहे अफ़जाल अंसारी को भी इस मामले में चार साल की सज़ा सुनाई गई थी.

ग़ाजीपुर ज़िले के मुहम्मदाबाद थाने में दर्ज आपराधिक इतिहास के अनुसार, मुख़्तार अंसारी पर कुल 65 मुक़दमे चल दर्ज थे.

मुख़्तार अंसारी पर 1996 में विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी और कोयला व्यापारी नंदकिशोर रुंगटा के अपहरण और बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में शामिल होने का मुक़दमा दर्ज किया गया था.

साल 2005 में कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई थी.

अफ़ज़ाल अंसारी

दो अन्य मामलों में मिली थी सज़ा

पिछले कुछ सालों से अंसारी परिवार चर्चा में रहा है. मऊ में अंसारी की कई कथित ग़ैरक़ानूनी संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया था.

सितंबर 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मुख़्तार अंसारी को एक जेलर को धमकाने के मामले में सात साल की सज़ा सुनाई थी. ये मामला साल 2003 का था.

इसके कुछ दिन बाद 1999 के एक मामले में गैंगस्टर एक्ट के तहत उन्हें पांच साल सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई और 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया.

जुलाई 2022 में मुख़्तार अंसारी की पत्नी अफ़सा अंसारी और उनके बेटे अब्बास अंसारी को फ़रार घोषित कर दिया गया.

अगस्त 2020 में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने अफ़जाल अंसारी के घर को ढहा दिया. आरोप था कि ये घर ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से बनाया गया था.

उन पर कुल विभिन्न अपराधों में 65 मुक़दमे चल रहे थे. उन पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ़ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट) और गैंगस्टर ऐक्ट के तहत भी मामले दर्ज थे.

इनमें से कुछ अहम मामलों में अदालत ने सबूतों की कमी, गवाहों के पलट जाने और सरकारी वकील की कमज़ोर पैरवी के कारण इन्हें बरी कर दिया गया लेकिन कुछ सालों में कुछ मुक़दमे नतीजे तक पहुंचे और उन्हें सज़ा हुई.

चर्चित कृष्णानंद राय हत्याकांडः 500 गोलियां

मुख़्तार अंसारी

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1985 से अंसारी परिवार के पास रही गाज़ीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट 17 साल बाद 2002 के चुनाव में उनसे बीजेपी के कृष्णानंद राय ने छीन ली.

लेकिन वे विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके, तीन साल बाद उनकी हत्या कर दी गई.

पूर्वांचल में आग की तरह फैली इस हत्याकांड की ख़बर को मौक़ा-ए-वारदात पर कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह ने बताया था कि, “वह एक कार्यक्रम का उद्घाटन करके लौट रहे थे कि तभी उनकी बुलेट प्रूफ़ टाटा सूमो गाड़ी को चारों तरफ़ से घेर कर अंधाधुंध फ़ायरिंग की गई. हमले के लिए स्पॉट ऐसी सड़क को चुना गया था जहां से गाड़ी दाएँ-बाएँ मोड़ने का कोई स्कोप नहीं था. कृष्णानंद के साथ कुल 6 और लोग गाड़ी में थे. एके-47 से तक़रीबन 500 गोलियां चलाई गईं, सभी सातों लोग मारे गए.”

जानकारों के अनुसार ग़ाज़ीपुर की अपनी पुरानी पारिवारिक सीट हार जाने से मुख़्तार अंसारी नाराज़ थे. कृष्णानंद हत्याकांड के वक़्त में जेल में बंद होने के बावजूद मुख़्तार अंसारी को इस हत्याकांड में नामज़द किया गया.

पवन के अनुसार,, “गाज़ीपुर से सांसद और मौजूदा सरकार में मंत्री मनोज सिन्हा की पूरी पॉलिटिक्स इसी हत्याकांड के बाद पुरज़ोर तरीक़े से खड़ी हुई. मनोज इस मामले में मुख़्तार के ख़िलाफ़ गवाह हैं. कृष्णानन्द भूमिहार थे और उनके सजातीय सिन्हा ने उन्हें ‘न्याय दिलवाने के लिए बिना डरे संघर्ष करने वाले’ एकमात्र नेता होने के नाम पर वोट मांगते हुए कई चुनाव जीत लिए.”

दादा स्वतंत्रता सेनानी, नाना शहीद

मुख़्तार अंसारी के नाना और दादा की तस्वीरें

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साल 2019 में बीबीसी पर प्रकाशित कहानी के मुताबिक, मुख़्तार अंसारी के दादा देश की आज़ादी के संघर्ष में गांधी जी का साथ देने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं और 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे डॉक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी थे.

मुख़्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947 की लड़ाई में शहादत के लिए महावीर चक्र से नवाज़ा गया था.

ग़ाज़ीपुर में साफ़-सुथरी छवि रखने वाले और कम्युनिस्ट बैकग्राउंड से आने वाले मुख़्तार के पिता सुभानउल्ला अंसारी स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे. भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में मुख़्तार अंसारी के चाचा हैं.

मुख़्तार के बड़े भाई अफ़जाल अंसारी ग़ाज़ीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा से लगतार पाँच बार (1985 से 1996 तक) विधायक रह चुके हैं और 2004 में ग़ाज़ीपुर से ही सांसद का चुनाव भी जीत चुके हैं.

मुख़्तार के दूसरे भाई सिबकातुल्ला अंसारी भी 2007 और 2012 के चुनाव में मोहम्मदाबाद से ही विधायक रह चुके हैं.

1996 में बसपा के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचने वाले मुख़्तार ने 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की. इनमें से आख़िरी तीन चुनाव उन्होंने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े.

मुख़्तार अंसारी के दो बेटे हैं. उनके बड़े बेटे अब्बास अंसारी ने 2017 के चुनाव में मऊ ज़िले की ही घोसी विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ा था और 7 हज़ार वोटों से अंतर से हार गए थे.

मुख़्तार अंसारी के भाई अफ़जाल अंसारी ने अपना राजनीतिक करियर कम्युनिस्ट पार्टी से शुरू किया था, फिर समाजवादी पार्टी में गए, इसके बाद उन्होंने ‘क़ौमी एकता दल’ के नाम से अपनी पार्टी का गठन किया और 2017 में बसपा में शामिल हो गए.

वहीं मुख़्तार बसपा से शुरू करने के बाद निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा, फिर 2012 में पारिवारिक पार्टी क़ौमी एकता दल से खड़े हुए और 2017 में पार्टी के बसपा में विलय होने के साथ ही वह भी बसपा में शामिल हो गए. यहां यह दिलचस्प है कि कभी मुख़्तार अंसारी को ‘गरीबों का मसीहा’ बताने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने अप्रैल 2010 में अंसारी भाइयों को ‘अपराधों में शामिल’ बताते हुए बसपा से निकाल दिया था.

2017 के चुनाव से पहले उन्होंने ‘अदालत में उन पर कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ है’ कहते हुए अंसारी भाइयों की पार्टी ‘क़ौमी एकता दल’ का विलय बसपा में करवा लिया.

बाएं से : अफ़ज़ाल अंसारी, अब्बास अंसारी और उमर अंसारी

ग़ाज़ीपुर में मुख़्तार का उभार

मुख़्तार अंसारी के राजनीतिक और आपराधिक समीकरणों में ग़ाज़ीपुर का महत्व बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक ने बीबीसी से कहा था, “80 और 90 के दशक में अपने चरम पर रहा बृजेश सिंह और मुख़्तार का ऐतिहासिक गैंगवार यहीं ग़ाज़ीपुर से शुरू हुआ था.”

दोआब की उपजाऊ ज़मीन पर बसा ग़ाज़ीपुर ख़ास शहर है. राजनीतिक तौर पर देखें तो एक लाख से ज़्यादा भूमिहार जनसंख्या वाले ग़ाज़ीपुर को उत्तर प्रदेश में भूमिहारों के सबसे बड़े पॉकेट में से एक माना जाता है. यहां तक कि कुछ पुराने स्थानीय पत्रकार आम बोलचाल में ग़ाज़ीपुर को ‘भूमिहारों का वैटिकन’ भी कहते हैं.

देश के सबसे पिछड़े इलाक़ों में आने वाले ग़ाज़ीपुर में उद्योग के नाम पर यहां कुछ ख़ास नहीं है. अफ़ीम का काम होता है और हॉकी ख़ूब खेली जाती है.

ग़ाज़ीपुर का एक महत्वपूर्ण विरोधाभास यह भी है कि अपराधियों और पूर्वांचल के गैंगवार की धुरी होने के साथ-साथ इस ज़िले से हर साल कई लड़के आईएएस-आईपीएस भी बनते हैं.

पाठक के मुताबिक़, “मुख़्तार अंसारी और उनके परिवार का राजनीतिक प्रभाव ग़ाज़ीपुर से लेकर मऊ, जौनपुर, बलिया और बनारस तक है. सिर्फ़ 8-10 प्रतिशत मुसलमान आबादी वाले ग़ाज़ीपुर में हमेशा से अंसारी परिवार हिंदू वोट बैंक के आधार पर चुनाव जीतता रहा है”.

ग़ाज़ीपुर के यसुफ़पूर इलाक़े में स्थित मुख़्तार अंसारी का पैतृक निवास ‘बड़का फाटक’ या ‘बड़े दरवाज़े’ के नाम से जाना जाता है. क़स्बेनुमा इस छोटे से शहर में ‘बड़का फाटक’ का पता सभी जानते हैं इसलिए रास्ता पूछते-पूछते उनके घर पहुंचने में मुझे कोई दिक़्क़त नहीं हुई.

दिसंबर महीने में जब मैं ग़ाज़ीपुर पहुंची तब मुख़्तार की बुज़ुर्ग माँ बहुत बीमार चल रही थीं. उनको आख़िरी बार देखने के लिए उनका पूरा परिवार देश-दुनिया के अलग-अलग कोनों से इकट्ठा हो रहा था.

मुख़्तार बांदा जेल में बंद थे लेकिन उनके बड़े भाई अफ़जाल अंसारी और बेटे अब्बास अंसारी ने बीबीसी से बातचीत की. इसके कुछ ही घंटों के भीतर मुख़्तार की माँ का देहांत हो गया.

मुख़्तार अंसारी के घर के बाहर बना ‘बड़ा दरवाज़ा’ आगंतुकों के लिए दिन भर खुला रहता है. बारामदे में खड़ी बड़ी गाड़ियों के क़ाफ़िले के आगे बनी बड़ी-सी बैठक में स्थानीय लोग अंसारी भाइयों से मिलने के इंतज़ार में बैठे थे. बैठक में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष डॉक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी से लेकर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी तक, परिवार के सभी राजनीतिक चेहरों और गुज़र चुके पूर्वजों की तस्वीरें लगीं थीं.

अंसारी परिवार की बैठक में लगी पारिवारिक नेताओं की तस्वीरें

छोटे भाई मुख़्तार के बारे में बात करते हुए अफ़जाल अंसारी ने बीबीसे से कहा था, “मुख़्तार हमसे दस साल छोटे हैं. स्कूल ख़त्म होने के बाद वो यहीं ग़ाज़ीपुर के कॉलेज में पढ़ते थे. उस कॉलेज में राजपूत-भूमिहारों का वर्चस्व था. वहीं इनकी दोस्ती साधू सिंह नाम के एक लड़के से हुई. उससे दोस्ती निभाने के चक्कर में ये उसकी निजी दुश्मनियों में शामिल हो गए और इनके गले कुछ बदनामियाँ पड़ गईं”.

सांसद अफ़ज़ाल अंसारी ने कहा था, “इनके (मुख़्तार के) साथ-साथ पूरे परिवार को भी बदनामी झेलनी पड़ी लेकिन ये सारे मुक़दमे जो मुख़्तार पर लगाए गए हैं वे राजनीति से प्रेरित हैं. 15 साल से ज़्यादा वक़्त से वो जेल में बंद हैं. अगर उन्होंने वाक़ई कुछ गलत किया है तो पुलिस आपकी है, सरकार आपकी है, सीबीआईआपकी है, अब तक कोई गुनाह साबित क्यों नहीं हुआ?”

मुख़्तार के राजनीतिक प्रभाव के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा था, “मुख़्तार मऊ से चुनाव लड़ते और जीतते आए हैं. राजनीतिक तौर पर हमसे बड़ी औक़ात है मुख़्तार की. उनका ग्लैमर कोशेंट बड़ा है. आज हम गाज़ीपुर से बाहर कहीं भी जाते हैं तो लोग हमारी पहचान उनके नाम से करवाते हैं”.

अफ़ज़ाल ने कहा था, “सिर्फ़ ग़ाज़ीपुर के 8 फ़ीसदी मुसलमान हमें नहीं जिता सकते, यहां के हिंदू हमें जिताते हैं. आख़िर हम भी हर सुख-दुःख में उनके साथ खड़े रहे, रोज़े में मुँह पर रुमाल रखकर यहां लोगों के साथ हाथियों पर बैठकर होली तक खेली है. यह सब हमारे अपने लोग हैं, इसलिए तो हमें इनके वोटों पर भरोसा रहता है”.

SOURCE : BBC NEWS