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अफ़्रीका के एक टापू पर क़ैद नेपोलियन के अंतिम दिन कैसे बीते?

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Source :- BBC INDIA

नेपोलियन बोनापार्ट

वाटरलू की लड़ाई में हार के बाद नेपोलियन को लगा कि यूरोप में उसका कोई भविष्य नहीं है. उसने अमेरिका जाने का फ़ैसला किया.

लेकिन ब्रिटिश नौसेना के जहाज़ों ने फ़्रांस के अटलांटिक किनारे की इस तरह से घेराबंदी कर रखी थी कि वहाँ से बच निकलना लगभग असंभव था.

नेपोलियन ने तय किया कि वो ब्रिटिश नौसेना के सामने आत्मसमर्पण कर ब्रिटेन में राजनीतिक शरण की मांग करेंगे, लेकिन ब्रिटेन नेपोलियन को किसी भी तरह की रियायत देने के मूड में नहीं था.

एएम ब्रोडली अपनी किताब ‘नेपोलियन इन कैरिकेचर 1795-1821’ में लिखते हैं, “ब्रितानी जनता की नज़र में नेपोलियन एक पीड़ित से अधिक अपराधी थे. वहां के कार्टूनिस्ट उन्हें पिंजरे में बंद एक जानवर की तरह दिखा रहे थे. आम राय ये बनी कि उन्हें इंग्लैंड में रखने पर वो देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करेंगे. अगर उन्हें ब्रिटिश धरती या पास के किसी देश में रखा जाता है तो वो भावी बग़ावत का केंद्र बिंदु बन सकते हैं.”

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नेपोलियन को सेंट हेलेना भेजने का फ़ैसला

नेपोलियन सेंट हेलेना में

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ब्रिटिश सरकार ने उन्हें दुनिया से पूरी तरह से कटे इलाके सेंट हेलेना में रखने का फ़ैसला किया. ये पश्चिमी अफ़्रीका में एक द्वीप था जिस पर ब्रिटेन का कब्ज़ा था.

ये जगह मुख्य भूमि से कम-से-कम 1200 किलोमीटर दूर थी.

ब्रायन उनविन अपनी किताब ‘टेरेबिल एक्साइल, द लास्ट डेज़ ऑफ़ नेपोलियन ऑन सेंट हेलेना’ में लिखते हैं, “सेंट हेलेना भारत पर राज कर रही ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाज़ों के लिए एक प्रमुख विश्राम स्थल था. ये एक तरह की ब्रिटिश छावनी थी जिसमें करीब 5000 लोग रहते थे. इनमें से कुछ मेडागास्कर के गुलाम और चीन के मज़दूर थे जो यहाँ से हर वर्ष गुज़रने वाले करीब एक हज़ार जहाज़ों की देखभाल किया करते थे.”

नेपोलियन के साथ 27 लोग सेंट हेलेना गए

31 जुलाई, 1815 को एडमिरल लॉर्ड कीथ ने नेपोलियन को सूचित किया कि उन्हें युद्धबंदी के तौर पर सेंट हेलेना में रखा जाएगा.

नेपोलियन ने इसका ज़बरदस्त विरोध करते हुए कहा कि उन्हें बेवकूफ़ बनाकर कहा गया कि उन्हें इंग्लैंड में रहने दिया जाएगा.

ये खबर सुनकर वो अपने जहाज़ के केबिन में चले गए और तीन दिनों तक उससे बाहर नहीं निकले. चौथे दिन उन्होने ब्रिटिश सरकार को एक औपचारिक पत्र लिख कर अपना विरोध प्रकट किया.

एडम ज़ेमोइस्की अपनी किताब ‘नेपोलियन द मैन बहाइंड द मिथ’ में लिखते हैं, “कुल मिलाकर 27 लोगों को नेपोलियन के साथ सेंट हेलेना जाने की इजाज़त दी गई. जब वो जहाज़ पर चढ़े तो नेपोलियन और उनके साथियों के सामान की तलाशी ली गई. उनके पास से बहुत सारा धन बरामद हुआ. नेपोलियन को इसकी आशंका पहले से ही थी इसलिए उन्होंने कपड़ों की बेल्ट में सोने के सिक्के अपने साथियों की कमर में बाँध दिए थे.”

इस लंबी यात्रा के दौरान उन्होंने समुद्री यात्रा से होने वाली परेशानियों का अच्छी तरह से सामना किया. वो अपने केबिन में रहकर पढ़ते रहे. उन्होंने नाविकों के साथ बात की और अपनी अंग्रेज़ी सुधारने की भी कोशिश की. 24 अक्तूबर को उन्हें अपना गंतव्य स्थान सेंट हेलेना दिखाई पड़ा.

नेपोलियन और अंग्रेज़ों के संबंध बिगड़े

नेपोलियन

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इस टापू का क्षेत्रफल 122 वर्ग किलोमीटर था. इस टापू को साल 1502 में पुर्तगालियों ने ढूँढा था. सन् 1815 में यहाँ 3395 यूरोपियन, 218 काले ग़ुलाम, 489 चीनी और 116 भारतीय और मलय रह रहे थे.

यहाँ एक सैनिक गवर्नर शासन करता था और यहाँ ब्रिटिश सेना की एक छोटी टुकड़ी तैनात थी.

नेपोलियन को पहले एक इंग्लिश एस्टेट ‘द ब्रायर’ में रखा गया. कुछ दिनों बाद उन्हें लौंगवुड हाउस में शिफ़्ट कर दिया गया.

ब्रायन उनविन लिखते हैं, “वहाँ नेपोलियन पर कड़ी निगरानी रखी जाती. अगर वो बगीचे से बाहर निकलते तो एक ब्रिटिश सैनिक हमेशा उनके साथ रहता. जब हडसन लोव को सेंट हेलेना का गवर्नर बनाया गया, नेपोलियन पर कड़ाइयाँ और बढ़ गईं. साल 1816 आते-आते ब्रिटिश नौकरशाही ने उनके रिश्ते तनावपूर्ण होते चले गए.”

जब ब्रितानियों ने उनके लिए नया निवास स्थान बनवाना शुरू किया तो भी नेपोलियन समझ गए कि उनको अपने जीवन के बाकी सारे दिन सेंट हेलेना में ही गुज़ारने होंगे.

बगीचे में चहलक़दमी और ताश से मनोरंजन

लौंगवुड हाउस में नेपोलियन का अधिकतर समय पढ़ाई में बीतता. वो यूरोप से आने-वाले जहाज़ों का इंतज़ार करते ताकि उनके लिए वहाँ से किताबें आ सकें.

नेपोलियन को दूसरा शौक था उनसे मिलने आने वालों लोगों का अच्छे खाने और शराब से ख़ातिर करना.

जाँ पॉल बरतू नेपोलियन की जीवनी में लिखते हैं, “नेपोलियन मेहमाननवाज़ी में हमेशा बजट से अधिक धन ख़र्च करते. वो बहुत अधिक मात्रा में शराब पीते और पिलाते. सन 1816 में ही उन्हें 3700 वाइन की बोतलें भेजी गईं जिसमें बाओडो वाइन की 830 बोतलें शामिल थीं. नेपोलियन घुड़सवारी या ‘द ब्रायर’ के बगीचों में चहलकदमी कर अपने शरीर को स्वस्थ रखते. उनके साथ हमेशा कैप्टेन पॉपलेटन रहते जिन्हें उन पर नज़र रखने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. वो अपनी शाम अपने साथी बालकॉम के साथ ताश खेलने में बिताते.”

सेंट हेलेना का मौसम और माहौल रास नहीं आया

नेपोलियन और उनके साथी सेंट हेलेना की राह में एक जहाज पर

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लौंगवुड हाउस में जहाँ नेपोलियन को रखा गया था अभी भी निर्माण का काम चल रहा था.

एडम ज़मोइस्की लिखते हैं, “नेपोलियन ने शिकायत की कि पेंट की महक उन्हें बीमार होने का आभास दिलाती है. सेंट हेलेना के मौसम और हालात ने नेपोलियन और उनके दल को खिन्न कर दिया था क्योंकि वो लोग सूखे मौसम, अच्छे खाने और विलासिता में रहने के आदी थे.”

उन्होंने लिखा, “नेपोलियन के साथ आए अफ़सर उनके सामने पूरे राजसी प्रोटोकॉल का पालन करते थे. दिन में नेपोलियन आम तौर से हरे रंग का शिकारी कोट या सफ़ेद लिनेन का कोट या पतलून पहनते थे. रात का भोजन वो अपनी पूरी सैनिक यूनिफ़ॉर्म में करते थे. उनके साथ आई महिलाएं दरबारी कपड़े और ज़ेवर पहन कर रात के खाने में शामिल होती थीं. भोजन के बाद वो ताश खेलते थे, बातें करते थे या नेपोलियन को कोई किताब पढ़वाकर सुनते थे.”

नेपोलियन की हर गतिविधि पर कड़ी नज़र

पहरे में रहने के वावजूद नेपोलियन बाग़बानी का अपना शौक पूरा करते. इस काम में दो चीनी मजदूर उनकी मदद करते. नेपोलियन पौधों को अपने हाथ से पानी देना पसंद करते. नेपोलियन सही मायनों में न तो युद्धबंदी थे और न ही सज़ायाफ़्ता अपराधी. एक हद तक ही उनको पैदल चलने या घुड़सवारी करने की छूट दी जाती थी. उस समय भी हमेशा एक ब्रिटिश अफ़सर उनके साथ चलता था, घर के अंदर भी सैनिक उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखते थे.

दिन में दो बार एक अफ़सर उनके सामने जाकर उनके वहाँ रहने की पुष्टि करता था. सेंट हेलेना के गवर्नर रहे रियर एडमिरल सर जॉर्ज कॉकबर्न ने अपनी डायरी में लिखा था, “दो पानी के जहाज़ हमेशा द्वीप का चक्कर लगाते रहते थे. नेपोलियन को कोई भी अख़बार पढ़ने के लिए नहीं दिया जाता था. इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि नेपोलियन ने सेंट हेलेना से कभी बच निकलने के बारे में सोचा हो.”

इसके विपरीत उन्होंने अपने-आप को वहाँ के हालात में कुछ इस तरह ढाल लिया था कि लगता था कि वो इसका आनंद लेने लगे हैं. वो सभी ब्रिटिश अधिकारियों के साथ विनम्र व्यवहार करते थे. वहाँ आने या वहाँ से गुज़रने वाले ब्रिटिश सैनिकों के लिए नेपोलियन की एक झलक भर पा लेना एक बहुत बड़ा आकर्षण हुआ करता था.

उन लोगों के साथ भी नेपोलियन का व्यवहार बहुत अच्छा हुआ करता था. नतीजा ये हुआ कि ब्रिटिश अख़बारों में इस आशय की ख़बरें छपने लगीं कि नेपोलियन को बहुत कठिन परिस्थितियों में रखा जा रहा है.

नेपोलियन और गवर्नर लोव में अनबन

नेपोलियन राज्याभिषेक की पोशाक में

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अप्रैल, 1816 में मेजर जनरल सर हडसन लोव ने एडमिरल कॉकबर्न की जगह सेंट हेलेना के सैनिक गवर्नर का कार्यभार संभाला, लेकिन शुरुआत से ही नेपोलियन और लोव के बीच नहीं बन पाई.

एडम ज़मोइस्की ने लिखा, “जब नए गवर्नर बिना पूर्व सूचना के लौंगवुड हाउस पहुंचे तो नेपोलियन ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया. नेपोलियन ने उन्हें कहलवा भेजा कि वो उनसे अगले दिन मुलाकात करेंगे. मुलाकात हुई भी लेकिन नेपोलियन ने उसी क्षण से उन्हें नापसंद करना शुरू कर दिया. लोव ने भी नेपोलियन को सबक सिखाने का फ़ैसला कर लिया.”

जब नेपोलियन के एक अंग्रेज़ प्रशंसक ने उन्हें किताबों को दो कार्टन भेजे तो लोव ने उन्हें ज़ब्त करवा दिया. जब उनकी बहन पोलीन ने उनके इस्तेमाल के लिए कुछ चीज़ें भेजी तो उन्हें नेपोलियन के पास ये कहकर जाने से रोक दिया गया कि उन्हें इतनी सारी चीज़ों की ज़रूरत नहीं है.

नेपोलियन और लोव के बीच तक़रार

इस बीच लोव और नेपोलियन के बीच दो मुलाकातें हुईं. टॉमस ऑबरी अपनी किताब में लिखते हैं. “नेपोलियन इन मुलाकातों को दौरान पूरे वक्त खड़े रहे. नतीजा ये रहा कि लोव को भी खड़े रहना पड़ा क्योंकि सम्राट के सामने बैठना प्रोटोकॉल के ख़िलाफ़ होता. लोव को ऊपर से आदेश हुआ कि नेपोलियन पर होने वाले ख़र्चे को कम किया जाए. जब लोव ने इस बारे में नेपोलियन से बात करनी चाही तो उन्होंने कहा कि इस बारे में मेरे बटलर से बात करिए.”

जब 18 अगस्त, 1816 को लोव एक बार फिर नेपोलियन से मिलने गए तो नेपोलियन उस पर ये कहकर बरस पड़े कि आप एक मामूली क्लर्क के सिवा कुछ भी नहीं हैं.

गिल्बर्ट मार्टिन्यू नेपोलियन की जीवनी में लिखते हैं, “नेपोलियन ने लोव से कहा कि ‘तुम सम्मानीय व्यक्ति कतई नहीं हो. तुम वो शख़्स हो जो चोरी-छिपे दूसरों के पत्र पढ़ता है. तुम मात्र एक जेलर हो, सैनिक तो बिल्कुल भी नहीं. मेरा शरीर ज़रूर तुम्हारे हाथ में है, लेकिन मेरी आत्मा स्वतंत्र है.”

ये सुनते ही लोव का मुंह लाल हो गया. उसने नेपोलियन से कहा ‘तुम हास्यास्पद हो और तुम्हारी अशिष्टता दयनीय है.’ ये कहकर लोव वहाँ से चले आए.

इसके बाद उनकी नेपोलियन से जीवित रहते कभी मुलाक़ात नहीं हुई.

नेपोलियन का स्वास्थ्य बिगड़ा

सेंट हेलेना में बीमार नेपोलियन

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इसके बाद से नेपोलियन का मनोबल गिरना शुरू हो गया. जीवन की एकरसता, बोरियत, ख़राब मौसम, ख़राब खाने, हर दरवाज़े और खिड़की पर संतरियों की मौजूदगी. चलने-फिरने पर रोकटोक और लगातार आती बीमारियों ने नेपोलियन को बुरी तरह से विचलित कर दिया.

अपने घूमने-फिरने पर लोव के लगाए प्रतिबंध के बाद नेपोलियन ने घुड़सवारी करना और सैर के लिए जाना बंद कर दिया.

1816 का अंत आते-आते नेपोलियन खाँसी और बुख़ार से ग्रस्त रहने लगे. कई दिन ऐसे भी आते थे कि वो कपड़े तक नहीं बदलते थे और अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते थे.

टॉमस ऑबरी लिखते हैं “जब नेपोलियन बीमार पड़े तो गवर्नर लोव ने पहले तो ये स्वीकार ही नहीं किया कि वो बीमार हैं. बाद में उन्होंने सेना और नौसेना के एक अच्छे डॉक्टर को भेजने की पेशकश की जिसे नेपोलियन ने इस शक की वजह से स्वीकार नहीं किया कि वो गवर्नर के लिए जासूसी करेंगे. बाद मे नेपोलियन ने एचएम एस कॉन्करर के डाक्टर जॉन स्टोको को खुद को देखने की अनुमति दे दी.”

सिर्फ़ 52 वर्ष की आयु में नेपोलियन का देहावसान

नेपोलियन का निधन (स्टेबेन चार्ल्स डी की पेंटिंग)

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जनवरी 1819 में डाक्टर स्टोको ने पाया कि नेपोलियन हेपाटाइटिस से पीड़ित हैं. अप्रैल में नेपोलियन ने ब्रिटेन के प्रधानमत्री लॉर्ड लिवरपूल को अपने ख़राब स्वास्थ्य के बारे में एक पत्र भिजवाया लेकिन लोव ने प्रधानमंत्री को समझा दिया कि नेपोलियन के स्वास्थ्य में कोई गड़बड़ी नहीं है.

वसंत आते-आते उन्हे एक गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया. वो या तो कैंसर था या पेट में अल्सर की वजह से होने वाला रक्तस्राव. अप्रैल के आखिरी सप्ताह में नेपोलियन को ख़ून की उल्टियाँ होनी शुरू हो गई थीं.

उन्होने अनुरोध किया कि उनके पलंग को ड्राइंग रूम में शिफ़्ट कर दिया जाए जहाँ ज़्यादा रोशनी आती थी. वो दिनोंदिन कमज़ोर होते जा रहे थे और कई बार बेहोश भी हो जाते थे.

5 मई, 1821 को उन्होंने शाम 5 बजकर 50 मिनट पर अंतिम साँस ली. उस समय उनकी आयु थी मात्र 52 वर्ष.

पेरिस में दोबारा दफ़नाया गया

बाद में उनकी मृत्यु के कारणों पर विवाद उठ खड़ा हुआ. एलन फॉरेस्ट ने नेपोलियन की जीवनी में लिखा, “उनके बालों में आर्सेनिक के अंश पाए गए. उनके एक साथी मारचेन ने यादगार के तौर पर उनके कुछ बाल अपने पास रख लिए थे. बाद में जब उनका वैज्ञानिक परीक्षण किया गया तो पाया गया कि नेपोलियन को संभवत: ज़हर दिया गया था.”

नेपोलियन ने अपने अंतिम समय में इच्छा प्रकट की थी कि उन्हें पेरिस में दफ़नाया जाए, लेकिन तब की ब्रिटिश और फ़्रेंच सरकार को ये स्वीकार्य नहीं था.

तय हुआ कि उन्हें सेंट हेलेना में ही दफ़नाया जाए. जब उनके पार्थिव शरीर को 12 ग्रेनेडियर्स के सैनिक दफ़नाने के लिए ले जा रहे थे, सेंट हेलेना की पूरी जनता वो दृश्य देखने के लिए बाहर आ गई थी.

उनका ताबूत नीले मख़मल के कपड़े से लिपटा था और उसके ऊपर उनकी तलवार और घड़ी रखी गई.

उनको दफ़नाए जाने के 18 वर्ष बाद फ़्रांस के राजा लुई फ़िलिप के आदेश पर उनके शव को सेंट हेलेना की कब्र से निकाल कर पेरिस ले जाया गया जहाँ उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ दोबारा दफ़नाया गया.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS