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1978 की मूवी में जीनत अमान के कपड़ों से मची थी हलचल, राज कपूर ने दी थी ये सफाई

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Source :- NEWS18

नई दिल्लीः राज कपूर को आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे महान फिल्मकारों में से एक के रूप में याद किया जाता है. लेकिन उनकी बाद की फिल्मों में, कई दर्शकों ने यह कहना शुरू कर दिया कि उनकी फिल्मों में महिलाओं को एक खास तरह की मर्दाना नजर से दिखाया जाता था, जो शोषणकारी (exploitative) लगती थी. हालांकि, राज कपूर इस आलोचना से वाकिफ थे और उनका नजरिए इसे लेकर कुछ और ही था.

राज कपूर ने फिल्मों में महिलाओं का कामुक तरीके से पेश किया
दरअसल, उनका मानना ​​था कि दूसरों की नजरों में शोषण के तौर पर लिए जाने वाली यह आलोचना, महिलाओं की खूबसूरती को दिखाने का उनका तरीका था. 1970 के दशक के बाद उनकी लगभग सभी फिल्मों ने अपनी कई महिला किरदारों को कामुक तरीके से पेश किया और राज ने अपनी बेटी रितु नंदा द्वारा प्रस्तुत पुस्तक में भी इसी बात को संबोधित किया है. उन फिल्मों में , जिनमें बॉबी, मेरा नाम जोकर, सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली शामिल हैं.

सत्यम शिवम सुंदरम में जीनत अमान की ड्रेस ने मचाई थी हलचल
राज कपूर: द वन एंड ओनली शोमैन नामक पुस्तक में, राज ने उस समय के बारे में बात की, जब उन्होंने 1978 की अपनी फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम के बारे में सीबीएफसी (केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) से बातचीत की थी. इस फिल्म में जीनत अमान मुख्य भूमिका में थीं और फिल्म में उनके कटस्यूम ने उन दिनों काफी हलचल मचाई थी. राज ने किताब में बताया, ‘हम न्यडिटी से चौंक जाते हैं. हमें थ्रो ग्रो करना चाहिए. जिस देश ने 700 मिलियन बच्चे पैदा किए हैं, वहां लोग जरा सी न्यूडिटी से चौंक जाते हैं! हम इतने पाखंडी क्यों हैं? बच्चे पेड़ों पर नहीं उगते. वे बिस्तर पर बनते हैं. और एक सुंदर लड़की दिखाने में क्या अनैतिकता है? सिनेमा को गांवों में ले जाएं, उन्हें मनोरंजन दें. अब उनके पास केवल शराब बनाना, उसे पीना और बच्चे पैदा करना ही मनोरंजन है.’

जब सेंसर बोर्ड से सवाल करने लगे राज कपूर
राज ने फिर भारत में सेंसर बोर्ड को सत्यम शिवम सुंदरम दिखाने के बारे में बात की और बताया, ‘जब फिल्म (सत्यम शिवम सुंदरम) पूरी हो गई, तो मैंने सेंसर बोर्ड से पूछा, ‘कौन सा ज्यादा हानिकारक है, यह या जिसे आप अनुमति दे रहे हैं? आप पूरे भारत में बैनर और पोस्टर देखते हैं. अहिंसा का प्रचार करने वाले देश में हर कोई बंदूक या तलवार या मारने के लिए कुछ और पकड़े हुए है! क्या आप नहीं समझ सकते कि यही हानिकारक है?’ राज ने जोर देकर कहा कि वह महिलाओं का सम्मान करते हैं, और उन्हें समझ में नहीं आता कि उन पर उनका शोषण करने का आरोप क्यों लगाया गया. उन्होंने कहा कि जब फेडेरिको फेलिनी जैसे निर्देशक ने महिलाओं को न्यूडिटी सिएचुशन में दिखाया, तो इसे कला के रूप में देखा गया, लेकिन जब उन्होंने कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की, तो इसे शोषण के रूप में देखा गया. उन्होंने लिखा, ‘मैं महिलाओं का सम्मान करता हूं और मुझे समझ में नहीं आता कि मुझ पर उनका शोषण करने का आरोप क्यों लगाया जाता है. अगर फेलिनी किसी महिला को नग्न अवस्था में दिखाते हैं, तो इसे कला माना जाता है. अगर मैं किसी महिला की सुंदरता को दिखाता हूं, तो इसे शोषण कहा जाता है.’

1970 के दशक के बाद सिनेमा में आया बदलाव
राज कपूर की फिल्मों में महिलाओं को हमेशा एक ही तरह से नहीं दिखाया जाता था, क्योंकि 1970 के दशक के बाद इसमें एक महत्वपूर्ण बदलाव आया. उन्होंने इसे स्वीकार किया और लिखा, ‘1950 के दशक की शुरुआत में मेरे काम को जिस चीज ने प्रभावित किया, जरूरी नहीं कि वो 1980 के दशक के काम को भी प्रभावित करे. ऐसा नहीं है कि आदर्शवाद खो गया है. मैंने ऐसे विषय उठाए हैं जिनमें महिलाएं शायद पुरुषों की तुलना में अधिक सक्रिय हैं या समाज द्वारा भावनात्मक अत्याचार के अधीन हैं.’

SOURCE : NEWS18