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श्याम बेनेगल ने सिर्फ 28 दिन में बना दी थी यह फिल्म, सिल्वर जुबली तक चली और मिला नेशनल अवॉर्ड

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Source :- LIVE HINDUSTAN

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सिनेमा जगत के सबसे हुनरमंद फिल्ममेकर्स में गिने जाने वाले श्याम बेनेगल ने सोमवार की शाम इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्होंने इसी महीने अपना 90वां जन्मदिन मनाया था जिसमें वो सभी बड़े कलाकार मौजूद थे जिन्हें श्याम बेनेगल ने फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया था। मंथन से लेकर निशांत और अंकुर जैसी फिल्में बना चुके श्याम बेनेगल को एक-दो नहीं कुल 8 बार नेशनल अवॉर्ड मिला था। लेकिन एक फिल्म ऐसी थी जिसकी शूटिंग को उन्होंने खूब एन्जॉय किया था। यह थी साल 1983 में रिलीज हुई फिल्म ‘मंडी’।

“वो फिल्में बनाई जो मैं बनाना चाहता था”

शबाना आजमी, रत्ना पाठक और स्मिता पाटिल स्टारर यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही थी। इसी साल नवंबर में समदीश के साथ हुए एक इंटरव्यू में श्याम बेनेगल ने इस फिल्म की शूटिंग के बारे में बात की थी। श्याम बेनेगल ने बताया, “मैंने वो फिल्में बनाई जो मैं बनाना चाहता था। मैंने कभी ऐसा कुछ करने के बारे में नहीं सोचा था जिसे मैं थिएटर में 100 हफ्ते या उससे अधिक समय तक चलता देखना चाहता था। एक बार ऐसा हुआ था कि मैंने कई साल पहले ‘मंडी’ नाम की यह फिल्म बनाई जो सिल्वर जुबली तक चली।”

‘शूटिंग के दौरान हम खूब मजे करते थे’

श्याम बेनेगल ने कहा कि वहीं बगल में एक सिनेमाघर हुआ करता था। वो सभी लोग फिल्म बनाने में बहुत मजे करते थे। उस फिल्म में सभी मेरे सभी पसंदीदा एक्टर्स थे। अमरीश (पुरी), ओम (पुरी), नसीरुद्दीन (शाह), शबाना (आजमी), स्मिता (पाटिल) थे। मैंने यह फिल्म हैदराबाद में शूट की थी। हम एक्टर्स को जोड़ते चले गए और इसमें बड़ा मजा आ रहा था क्योंकि हम बिना कुछ भी सोचे शूटिंग किए चले जा रहे थे। यह अपने आप बढ़ती चली गई। एक बार काम शुरू हुआ तो यह बढ़ता चला जाता था क्योंकि वो सभी गजब के कलाकार थे।

सिर्फ 28 दिन में खत्म हो गई थी शूटिंग

एक्टर्स की तारीफ करते श्याम बेनेगल ने कहा कि उनकी इंप्रोवाइजेशन की क्षमता कमाल की थी। मैंने सिर्फ 45 दिन का शेड्यूल सोचा था क्योंकि मैं आमतौर पर बिना ब्रेक लिए लगातार शूट करता जाता हूं, और हमने यह फिल्म 28 दिन में खत्म कर डाली थी। जब हमने आखिरी शॉट लिया तो मैंने कहा- बस अब नहीं? खत्म हो गई? कितनी खराब बात है। बता दें कि ‘मंडी’ फिल्म एक उर्दू शॉर्ट स्टोरी ‘आनंदी’ पर आधारित थी जिसे गुलाम अब्बास ने लिखा था। यह फिल्म एक वेश्यालय की कहानी सुनाती है जिसे रुक्मिणी बाई (शबाना आजमी) चलाती हैं। क्योंकि यह शहर के बीच में स्थित है, इसलिए कुछ राजनेता इस जमीन को हड़पने की कोशिश में लग जाते हैं। इस फिल्म ने बेस्ट आर्ट डायरेक्शन के लिए नेशनल अवॉर्ड जीता था।

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