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गुजरात के बीजे मेडिकल कॉलेज के आवासीय हॉस्टल में गुरुवार की दोपहर ख़ुशनुमा थी और कैंटीन में दोपहर के भोजन के लिए छात्रों की भीड़ थी.
कैफ़ेटेरिया का कमरा चुटकुलों, दोस्तों के बीच हंसी-मज़ाक और एकेडमिक बहस के शोर से भरा हुआ था.
स्थानीय समय के अनुसार, एक बजकर 39 मिनट पर कैफ़ेटेरिया में कम से कम 35 लोग थे. कुछ लोग खाना ले चुके थे और आसपास हंसी-मज़ाक चल रहा था. जबकि अन्य लोग अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे.
इनमें छात्र, डॉक्टर और उनके परिजन भी शामिल थे. लेकिन तभी हादसा हुआ और कुछ पल में सब बदल गया.
कैंटीन के सामान्य शोरगुल को, नज़दीक आते जेट इंजन की आवाज़ ने तोड़ा और फिर पूरे कमरे में धमाका हो गया.
एक मिनट पहले ही फ़्लाइट एआई171 ने यहां से महज डेढ़ किलोमीटर दूर अहमदाबाद एयरपोर्ट के रनवे से उड़ान भरी थी. एयर इंडिया का ये 787 ड्रीमलाइनर विमान 242 लोगों को लेकर लंदन जा रहा था.
लेकिन कुछ बहुत भयानक घटित हो गया था और रनवे छोड़ने के कुछ सेकेंड बाद ही विमान मुश्किलों में घिर गया.
एक भीड़भाड़ वाले इलाक़े में डॉक्टरों के हॉस्टल के ऊपर क्रैश होने से पहले विमान से एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल को मेडे का संदेश भेजा गया था.
इस हादसे में विमान में मौजूद 242 में से 241 लोगों समेत कुल मिलाकर कम से कम 270 लोगों की मौत हुई है.
(चेतावनी: इस रिपोर्ट के कुछ हिस्से पाठकों को विचलित कर सकते हैं.)

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विमान क्रैश होते ही आसमान में आग का गोला उठा और विमान में सवार एक को छोड़कर सभी यात्रियों की मृत्यु हो गई.
उन चंद पलों और उसके बाद जो कुछ हुआ उसकी कड़ी जोड़ने के लिए बीबीसी ने प्रत्यक्षदर्शियों, उस वक़्त हॉस्टल में मौजूद स्टूडेंट्स, हादसे में मारे गए ट्रेनी डॉक्टरों के दोस्तों और उनके टीचरों से बात की.
उस वक्त जो लोग दुर्घटना वाले इलाक़े में थे, उनका कहना है कि उन्हें तत्काल समझ नहीं आया कि हुआ क्या है.
इस मेडिकल कॉलेज के किडनी साइंस डिपार्टमेंट में काम करने वाले एक डॉक्टर ने बताया कि वह और उनके सहयोगी उस वक़्त हादसे की जगह से 500 मीटर दूर विभाग की इमारत में मौजूद थे. वो बताते हैं कि उन्हें बाहर से “कान के पर्दे फाड़ देने वाली तेज़ आवाज़” सुनाई दी.
उन्होंने बताया, “पहले हमने सोचा कि बिजली गिरी है. लेकिन हमें लगा कि 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में क्या ऐसा संभव हो सकता है?”
बाहर कुछ लोग चिल्लाते हुए कह रहे थे, “आओ देखो, एक विमान हमारी इमारत में क्रैश हुआ है.”
अगले कुछ मिनट तक सब कुछ धुंधला-धुंधला रहा. लोग बचने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे या ये जानने की कोशिश कर रहे थे कि क्या हुआ है. कैंपस में अफरा-तफरी मच गई थी.
कैंटीन में सबसे पहले पहुंचने वालों ने क्या देखा?

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जिस वक्त प्रिंस और क्रिश पाटनी ने विमान गिरने की आवाज़ सुनी, उस वक्त वो हादसे की जगह से कुछ मीटर दूर, अपनी बाइक पर थे.
ये दोनों भाई कुछ देर पहले ही क्रिकेट खेलने के लिए निकले थे.
18 साल की उम्र के प्रिंस ने बीबीसी को बताया, “कुछ ही सेकेंड में हमने ऐसी चीज़ देखी जो एक विमान के विंग जैसा था. हम दुर्घटनास्थल की ओर दौड़े, लेकिन विस्फोट की वजह से वहां का तापमान बहुत अधिक था और हम हॉस्टल में नहीं घुस सके. वहां बहुत सारा मलबा बिखर गया था.”
इन दोनों भाइयों ने और इस इलाक़े के कुछ अन्य लोगों ने हॉस्टल में घुसने से पहले तापमान कम होने का इंतज़ार किया. उन्होंने पुलिस के साथ मिलकर हॉस्टल के गेट से मलबा हटाया.
आख़िर में जब ये लोग कैंटीन में पहुंचे, वहां उन्हें कुछ नहीं दिख रहा था.
20 साल के क्रिश ने बताया कि पूरा कमरा घने काले धुएं से भरा हुआ था. हवा में जली हुई धातुओं की गंध थी.
प्रिंस और क्रिश ने खाना बनाने वाले गैस सिलेंडर को हटाना शुरू किया ताकि सिलेंडर के कारण और अधिक विस्फोट न हो.
इन दोनों भाइयों और अन्य लोगों ने वहां कई सूटकेसों का ढेर देखा और उसे हटाने की कोशिश की. उनके मुताबिक़, इसके बाद उन्हें जो दिखा, वो दिल दहला देने वाला था.
सूटकेसों के पीछे उन्हें लोगों के शव दिखने शुरू हुए.
इनमें से अधिकांश लोग जीवित थे. कुछ के हाथों में चम्मच थे, जो खू़न से सने थे. वहीं कुछ के सामने खाने की प्लेटें थीं और कुछ के हाथ में गिलास थे.
वो सभी लोग बुरी तरह जख़्मी दिख रहे थे.
क्रिश बताते हैं कि ‘वो लोग ख़ामोश थे, सदमे में थे. कुछ ही मिनट पहले वो दोपहर का अपना सामान्य कामकाज निपटा रहे थे, अब वे विमान के मलबे और जले हुए हिस्से से घिरे थे.’
नज़दीक की इमारत में रहने वाले एक डॉक्टर ने बताया, “उन्हें रिएक्ट करने का मौक़ा भी नहीं मिला.”
ज़िंदा बचे लोगों ने क्या बताया?

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हादसे से बच निकलने वालों में हॉस्टल में रहने वाले एक सेकेंड ईयर के छात्र भी थे.
जब प्लेन क्रैश हुआ तो उस समय वह मेस के कोने में एक बड़ी मेज़ के पास नौ अन्य लोगों के साथ बैठे हुए थे. वो बताते हैं कि अक्सर वो वहीं बैठा करते थे.
छात्र ने बताया, “एक बहुत बड़ा धमाका हुआ और एक भयानक आवाज़ आई. इसके बाद हम सभी बड़े-बड़े पत्थरों के नीचे थे, वहां हम फंस गए थे, निकलने का कोई रास्ता नहीं था. दुर्घटनाग्रस्त विमान में लगी आग और उससे उठता धुआं हमारे चेहरे पर आ रहा था. सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था.”
इस दुर्घटना में उस छात्र के सीने में गहरी चोट आई है और वह एक स्थानीय अस्पताल में अभी भी भर्ती है. वो कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि उनके दोस्तों के साथ क्या हुआ.
कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बीबीसी को बताया कि सबसे पहले छत को विमान के विंग ने चीर दिया, उसके बाद फ़्यूसलेज (विमान का मुख्य हिस्सा) गिरा. जब मुख्य हिस्सा गिरा तो उससे सबसे अधिक नुक़सान हुआ.
इस अफ़रा-तफ़री में छात्र जान बचाने के लिए इमारत से कूदने लगे, यहां तक कि इमारत के दूसरे और तीसरे माले से भी. बाद में इन स्टूडेंट्स ने बताया कि हॉस्टल की एकमात्र सीढ़ी का रास्ता मलबे की वजह से बंद हो गया था.
बीजे मेडिकल कॉलेज और सिविल अस्पताल की डीन मीनाक्षी पारिख ने बीबीसी को बताया कि हादसे में चार छात्रों और स्टूडेंट्स के चार परिजनों की मौत हुई है.
लेकिन जिन लोगों की मौत हुई है, उनकी पहचान करने में कई दिन लग सकते है, क्योंकि मलबे में पाए गए शवों के डीएनए टेस्ट ही जांचकर्तांओं के लिए उनकी पहचान का एक ज़रिया है.

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यहां से कुछ किलोमीटर दूर रवि ठाकुर रहते हैं. वह हॉस्टल के किचन में काम करते हैं. हादसे के वक्त वह शहर के दूसरे हॉस्टल्स में लंच बॉक्स देने के लिए निकले थे. पहले की तरह ही उनकी मां हॉस्टल में रुकी रहीं.
जब रवि को हादसे की ख़बर मिली, वो वापस दौड़े. उस वक्त तक अस्पताल परिसर में अफ़रा-तफ़री मची हुई थी. 45 मिनट बीत चुके थे और उस जगह में स्थानीय लोगों, दमकल कर्मियों, एंबुलेंस कर्मियों और एयर इंडिया स्टाफ़ की भीड़ लग चुकी थी.
रवि ने अपनी मां को तलाशने की कोशिश की लेकिन वो उन्हें खोज नहीं सके.
उधर अस्पताल के मुख्य ब्लॉक में मौजूद टीचर अभी भी इस शोरगुल में हालात को समझने की कोशिश कर रहे हैं.
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम का प्रकाशन)
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