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मार्क कार्नी कनाडा के अगले पीएम बनने की राह पर, भारत को लेकर ट्रूडो से कितना अलग है उनका रुख़?

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Source :- BBC INDIA

मार्क कार्नी, डायना कार्नी

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29 अप्रैल 2025, 13:36 IST

अपडेटेड 51 मिनट पहले

कनाडा के आम चुनावों में मार्क कार्नी की लिबरल पार्टी की जीत स्पष्ट होती जा रही है. ख़बर लिखे जाने तक उनकी पार्टी को 168 सीटें मिलती दिख रही हैं, जबकि बहुमत की सरकार बनाने के लिए उन्हें 172 सीटों की ज़रूरत होगी.

माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कनाडा विरोधी बयानों के ख़िलाफ़ मज़बूती से खड़े होने की वजह से मार्क कार्नी को चुनाव में सफलता मिली है, हालांकि उन्होंने अपने देश के लोगों से कई अन्य वादे भी किए थे.

जीत के बाद दिए गए अपने भाषण में मार्क कार्नी ने अपने समर्थकों से कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप हमें तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं ताकि अमेरिका हम पर अपना अधिकार जमा सके – ऐसा कभी नहीं होगा.”

उन्होंने कहा, “अमेरिका के साथ हमारा पुराना रिश्ता अब खत्म हो चुका है. हम अमेरिकी विश्वासघात के सदमे से उबर चुके हैं, हमें एक-दूसरे का ख़्याल रखना होगा.”

जिन वादों ने बनाई जीत की राह

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मार्क कार्नी ने कनाडा में मकान की कमी और बढ़ती महंगाई को स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि वो हर साल दोगुने घर बनवाएंगे जो किफ़ायती भी होंगे. इससे विनिर्माण उद्योग को भी बढ़ावा मिलेगा और महंगाई कम होगी.

कार्नी ने कम आय वाले लोगों पर टैक्स का बोझ कम करने का प्रस्ताव भी रखा था, ताकि ऐसे उपभोक्ताओं को राहत मिल सके.

उन्होंने कहा था कि वो कनाडा को ऊर्जा के क्षेत्र में सुपर पावर के तौर पर देखना चाहते हैं. उन्होंने अमेरिकी ऊर्जा पर कनाडा की निर्भरता को कम कर देश में ऊर्जा से जुड़े बुनियादी ढांचे को विकसित करने की बात कही थी.

कार्नी ने कनाडा के रक्षा बजट को पिछले साल के मुक़ाबले बढ़ाने की बात की थी.

उन्होंने घरेलू व्यापार और ज़्यादा कार बनाने की इच्छा जताई थी. कार्नी ने कनाडा में कार के ज़्यादा पुर्जे बनाने की घोषणा की थी.

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लिबरल पार्टी महज तीन महीने पहले चुनावों में काफ़ी पीछे चल रही थी लेकिन अमेरिका से बढ़ती तनातनी के बीच कार्नी ने पार्टी की बागडोर संभाली.

इसके बाद पार्टी के प्रचार अभियान में नया मोड़ आया.

इस साल की शुरुआत में नौ साल तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे जस्टिन ट्रूडो के पद छोड़ने के बाद मार्क कार्नी लिबरल पार्टी के नेता चुने गए थे और प्रधानमंत्री बने थे.

जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में भारत और कनाडा के रिश्तों में काफ़ी तनाव देखने को मिला था और दोनों देशों ने अपने राजनयिक रिश्ते काफ़ी कम कर दिए थे.

ट्रंप का मुद्दा हावी रहा

ट्रंप

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बीबीसी संवाददाता एंथनी ज़र्कर के अनुसार, लिबरल पार्टी की जीत में डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों का भी हाथ रहा है. उनके मुताबिक़, ट्रंप ने बार-बार कनाडा को उकसाया और उसे अमेरिका का 51वां राज्य बनने को कहा, इससे कनाडा के मतदाता एकजुट हो गए.

कनाडा की राजनीति में लिबरल पार्टी बीते कुछ महीनों से काफ़ी दवाब में थी. कुछ महीने पहले तक जिस पार्टी को लगभग ख़त्म हुआ समझा गया था, वो अब चौथी बार सत्ता में आ सकती है.

इसी साल जनवरी की शुरुआत में जस्टिन ट्रूडो ने अपनी ही पार्टी से बढ़ते दबाव चलते चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.

कार्नी ने जबसे कनाडा की कमान संभाली है, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री की अपेक्षा भारत के साथ रिश्तों में बदलाव के संकेत दिए हैं.

पूर्व बैंकर रहे कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने सोमवार को भारत और कनाडा के रिश्ते को ‘बहुत अहम’ बताया था और संकेत दिया था कि अगर वह दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं तो दोनों देशों के रिश्तों में सुधार लाने की कोशिश करेंगे.

भारत के बारे में क्या हैं कार्नी के विचार

मार्क कार्नी

चुनाव प्रचार अभियान समाप्त होने के पहले शनिवार को एक चुनावी रैली के दौरान कनाडा के एक चैनल वाई मीडिया के सवाल के जवाब में कार्नी का कहना था, “ये तो साफ़ है कि रिश्तों में तनाव है लेकिन यह हमारी वजह से नहीं है. एक दूसरे के प्रति सम्मान के साथ और इसे फिर से बनाने का आगे का रास्ता है.”

असल में उनसे पूछा गया था कि सत्ता में आने के बाद भारत कनाडा के रिश्तों में सुधार के लिए वह क्या करेंगे.

उन्होंने कहा, “भारत और कनाडा का रिश्ता कई स्तरों पर बहुत महत्वपूर्ण है. निजी संबंधों, आर्थिक और रणनीतिक मोर्चे पर भी. बहुत से कनाडाई हैं जिनके भारत से बहुत निजी संबंध हैं. मैं अपने अनुभव से कहता हूं कि इस समय विश्व अर्थव्यवस्था जिस तरह हिली हुई है और नया आकार ले रही है, ऐसे में भारत और कनाडा जैसे देश बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.”

मार्क कार्नी ने कहा कि ट्रेड वॉर से मौके भी पैदा हुए हैं, “मुझे लगता है कि मौके बनाए जाएंगे क्योंकि जो नकारात्मक घटनाएं हुई हैं, ख़ासकर ट्रेड वॉर, ये उन मौकों में से एक है, जिन पर अगर मैं प्रधानमंत्री बनता हूं तो काम करूंगा.”

यह बयान मतदान के ठीक पहले आया था और यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण संकेत है कि कार्नी की सरकार का भारत के साथ रिश्ते में क्या रुख़ रहने वाला है.

भारत को लेकर कार्नी का रुख़

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मार्क कार्नी ने कहा था कि अगर वे प्रधानमंत्री बनते हैं तो वे भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को बहाल करेंगे. उन्होंने समान विचारधारा वाले देशों के साथ कनाडा के व्यापार संबंधों में विविधता लाने की भी बात की थी.

कार्नी ने कहा, “कनाडा के पास समान सोच वाले मित्र देशों के साथ अपने व्यापार संबंध डावर्सिफ़ाई करने का अवसर है. हमारे पास भारत के साथ संबंधों को फिर से बनाने के अवसर हैं. उस वाणिज्यिक संबंध के इर्द-गिर्द मूल्यों की साझा भावना होनी चाहिए और अगर मैं प्रधानमंत्री हूं तो इस अवसर का बेसब्री से इंतज़ार करूंगा.”

उन्होंने मार्च में ही एक जनसभा के दौरान कहा था कि ‘कनाडा को नए दोस्तों और सहयोगियों की ज़रूरत है.’ इस संबंध में उन्होंने भारत का ख़ास तौर पर ज़िक्र किया था.

मार्क कार्नी कनाडा में रहने वाले भारतीय समुदाय से संवाद बनाने में यक़ीन रखते हैं.

इसी महीने छह अप्रैल को वह टोरंटो के एक हिंदू मंदिर में पहुंच कर लोगों को राम नवमी की बधाई दी थी.

ओकविले ईस्ट से लिबरल पार्टी की उम्मीदवार रहीं अनीता आनंद ने एक ट्वीट कर बताया था कि कार्नी टोरंटो में स्थित बाप्स स्वामीनारायण मंदिर पहुंचे थे.

इसी महीने 14 अप्रैल को कार्नी ने ओटावा सिख सोसायटी के गुरुद्वारा जाकर बैशाखी की शुभकामनाएं दी थीं और इसकी तस्वीरें अपने एक्स अकाउंट पर साझा की थीं.

ट्रूडो के कार्यकाल में भारत कनाडा संबंध

जी 20 के दौरान पीएम मोदी और जस्टिन ट्रूडो (फ़ाइल तस्वीर)

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जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल के आख़िरी दौर में भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में काफ़ी तनाव आ गया था.

रिश्तों में इस कड़वाहट का कारण कनाडा में ख़ालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या थी. इस मामले में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया था कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों के शामिल होने के ‘विश्वसनीय सुबूत’ हैं.

भारत ने इस आरोप से इनकार किया था. इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच संबंध बद से बदतर होते चले गए.

दोनों देशों ने एक दूसरे के डिप्लोमैट्स को भी देश छोड़ने को कहा था. मौजूदा वक़्त में दोनों देशों के बीच संबंध अपने सबसे ख़राब दौर से गुज़र रहे हैं.

जब ट्रूडो ने भारत पर आरोप लगाए तो ये भी कहा जा रहा था कि ट्रूडो कनाडा में सिख समुदाय का वोट लेने के लिए भारत के प्रति इतनी आक्रामकता दिखा रहे हैं.

भारत सरकार लंबे समय से कनाडा को ख़ालिस्तानी अलगाववादियों पर कार्रवाई करने के लिए कहती रही है. भारत का मानना है कि ट्रूडो सरकार अपने वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखते हुए ख़ालिस्तान पर नरम है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी ऐसा कह चुके हैं.

भारत पर ट्रूडो की नीतियों की आलोचना करने वालों का ये भी कहना था कि ट्रूडो ने पुलिस की जांच पूरी होने से पहले ही भारत पर आरोप लगाए.

ट्रूडो की तुलना में अब तक कार्नी के भारत के बारे में विचार काफ़ी सकारात्मक रहे हैं. लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि निज्जर जैसे मामलों पर मार्क कार्नी के रवैये के बारे में अधिक जानकारी नहीं है.

लेकिन इतना तो साफ़ है कि मार्क कार्नी भारत के साथ संबंधों को दोबारा पटरी पर लाने के हिमायती हैं.

मैक कार्नी कौन हैं?

मार्क कार्नी

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मार्क कार्नी बैंक ऑफ इंग्लैंड के पूर्व गवर्नर रह चुके हैं और इस केंद्रीय बैंक के 300 से अधिक वर्षों के इतिहास में शीर्ष बैंकिंग भूमिका निभाने वाले वह पहले गैर-ब्रिटिश शख़्स थे.

उन्होंने इससे पहले 2008 के वित्तीय संकट के दौरान बैंक ऑफ कनाडा के गवर्नर के रूप में अपने देश का नेतृत्व किया था.

अधिकांश प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों से उलट कार्नी ने इससे पहले कभी राजनीतिक पद नहीं संभाला था.

हालांकि पिछले मार्च में उन्होंने निवर्तमान प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की जगह लेने के लिए लिबरल पार्टी का चुनाव आसानी से जीत लिया.

अब मतदाताओं द्वारा चुनकर फिर से प्रधानमंत्री बनने वाले हैं.

उन्होंने वैश्विक आर्थिक संकटों से निपटने के अपने अनुभव के बारे में दावे किए हैं और उम्मीद की जा रही है कि कनाडाई उन्हें ऐसे नेता के तौर पर देखेंगे जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सामने डट कर खड़ा हो सके.

हालाँकि कार्नी ने दुनिया भर की यात्रा की है, न्यूयॉर्क, लंदन और टोक्यो जैसी जगहों पर काम किया है, लेकिन उनका जन्म नॉर्थवेस्ट टेरिटरीज़ के सुदूर उत्तरी शहर फोर्ट स्मिथ में हुआ था.

कार्नी के पास आयरिश और कनाडाई दोनों नागरिकताएं हैं. उन्हें 2018 में ब्रिटिश नागरिकता मिली, लेकिन हाल ही में उन्होंने कहा कि वह अपनी ब्रिटिश और आयरिश नागरिकता छोड़ने का इरादा रखते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री के पास केवल कनाडाई नागरिकता होनी चाहिए.

उनके पिता हाई-स्कूल प्रिंसिपल थे. वह छात्रवृत्ति पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय गए और वहां से पढ़ाई की.

1995 में, उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की.

उनकी थीसिस का विषय था- ‘क्या घरेलू प्रतिस्पर्धा किसी अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकती है.’

यह एक ऐसा विषय है जो निश्चित रूप से अमेरिकी टैरिफ़ के सामने आंतरिक व्यापार को आसान बनाने को लेकर उनकी भूमिका की परीक्षा लेगा.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

SOURCE : BBC NEWS