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बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ने वाली महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार, HC ने सुनाया फैसला

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Source :- Khabar Indiatv

Image Source : PIXABAY
प्रतीकात्मक तस्वीर

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक महिला का अपने बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ना ‘स्वैच्छिक परित्याग’ नहीं होता है, इसलिए वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने 13 मई को जारी एक आदेश में कहा कि इस स्थिति को बच्चे की देखभाल करने के परम कर्तव्य के परिणाम के तौर पर देखा जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने एक महिला और उसके नाबालिग बेटे को अंतरिम भरण-पोषण देने संबंधी निचली अदालत के आदेश को खारिज करने से मना कर दिया।

क्या है पूरा मामला?

महिला के पति ने निचली अदालत के अक्टूबर 2023 के उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उसे (पति को) अलग रह रही अपनी पत्नी और बच्चे को 7,500 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने के लिए कहा गया था। हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता पति को निर्देश दिया कि वह महिला को निचली अदालत द्वारा निर्धारित मासिक राशि देना जारी रखे, साथ ही अपने बच्चे के लिए अलग से प्रतिमाह 4,500 रुपये दे। कोर्ट ने कहा, ‘‘यह पूरी तरह से स्थापित तथ्य है कि नाबालिग बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी माता या पिता पर असमान रूप से पड़ती है, जो अक्सर पूर्णकालिक रोजगार की उनकी क्षमता को सीमित कर देती है, खासकर उन मामलों में जहां मां के नौकरी पर होने के दौरान उसके बच्चे की देखभाल में परिवार का कोई सहयोग नहीं मिलता है।’’

’40-50 हजार कमाती थी, मैं गुजारा भत्ता क्यों दूं’

फैसले में कहा गया है कि महिला द्वारा रोजगार छोड़ने को ‘‘काम का स्वैच्छिक परित्याग’’ नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे बच्चे की देखभाल के परम कर्तव्य के परिणामस्वरूप जरूरी माना जाता है। व्यक्ति ने निचली अदालत के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि महिला उच्च शिक्षा प्राप्त थी और पहले दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में गेस्ट टीचर के रूप में काम करती थी, जिससे वह प्रतिमाह ट्यूशन फीस सहित 40,000 से 50,000 रुपये कमाती थी। पति ने दावा किया था कि महिला कमाने और खुद का तथा बच्चे का भरण-पोषण करने में सक्षम थी, लेकिन उसे (पति को) परेशान करने के इरादे से याचिका दायर की गई।

अपीलकर्ता ने दलील दी थी कि फैमिली कोर्ट ने इस तथ्य पर विचार न करके त्रुटि की है कि महिला अपनी मर्जी से ससुराल से चली गई थी और अदालत के आदेश के बावजूद उसने अपने पति के साथ अपने वैवाहिक संबंध फिर से शुरू नहीं किए। पति ने दावा किया कि वह अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे के साथ रहने को तैयार है। उस व्यक्ति ने यह भी कहा कि वह हरियाणा में एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर रहा है और प्रतिमाह केवल 10,000 से 15,000 रुपये ही कमाता है, इसलिए वह अंतरिम भरण-पोषण संबंधी निचली अदालत के आदेश का पालन करने में असमर्थ है।

महिला ने क्या दलील दी?

दूसरी ओर, महिला ने दलील दी कि वह बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के कारण काम करने में असमर्थ थी। उसने कहा कि उसका पिछला रोजगार उसे उचित भरण-पोषण से वंचित करने का वैध आधार नहीं है। उसने दलील दी कि चूंकि उसे आने-जाने में बहुत समय लगता था और उसे घर के पास काम नहीं मिल पा रहा था, इसलिए उसने अपना टीचिंग करियर छोड़ दिया। अदालत ने महिला की दलील स्वीकार कर ली और उसके स्पष्टीकरण को ‘‘तार्किक और न्यायोचित’’ पाया। बेंच ने कहा कि व्यक्ति का आय प्रमाण-पत्र रिकॉर्ड में नहीं है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया कि वह अंतरिम भरण-पोषण की अर्जी तथा अंतरिम अवधि में व्यवस्था जारी रखने के लिए नए सिरे से निर्णय ले। (भाषा इनपुट्स के साथ)

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