Source :- Khabar Indiatv
शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने एडमंड हिलेरी के साथ 1953 में माउंट एवरेस्ट फतह किया था।
शेरपा तेनजिंग नोर्गे, एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही हिमालय की बर्फीली चोटियां, साहस की अनगिनत कहानियां और एक ऐसी जिंदगी की तस्वीर सामने आती है, जो किसी सिनेमाई गाथा से कम नहीं। वह एक साधारण शेरपा थे, जिन्होंने 29 मई 1953 को न्यूजीलैंड के पर्वतारोही एडमंड हिलेरी के साथ मिलकर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी, माउंट एवरेस्ट, को फतह कर इतिहास रच दिया। यह सिर्फ एक चढ़ाई नहीं थी, बल्कि इंसानी जज्बे, हौसले और मेहनत का वह मुकाम था, जिसने तेनजिंग को टाइम पत्रिका के 20वीं सदी के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शुमार किया। उनकी जिंदगी का हर पन्ना संघर्ष, साहस और सपनों की उड़ान से भरा है।
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हिमालय की गोद में पला एक सितारा
तेनजिंग नोर्गे का जन्म मई 1914 में हुआ, लेकिन उनकी सटीक जन्मतिथि एक रहस्य ही रही। अपनी आत्मकथा में उन्होंने बताया कि वह नेपाल के खुम्बु क्षेत्र के तेंगबोचे में एक शेरपा परिवार में पैदा हुए। लेकिन उनके बेटे जामलिंग और अन्य स्रोतों के अनुसार, उनका जन्म तिब्बत की कामा घाटी में त्से चू में हुआ, और वह बचपन में खार्ता और थामे में पले-बढ़े। बाद में, वह खुम्बु में एक शेरपा परिवार के लिए काम करने आए। तिब्बती पंचांग के ‘खरगोश के वर्ष’ के आधार पर उनका जन्म 1914 में माना जाता है।
एवरेस्ट की फतह के बाद, तेनजिंग ने 29 मई को अपना जन्मदिन मनाने का फैसला किया, क्योंकि उस दिन का मौसम और फसलें उनकी यादों से मेल खाती थीं। तेनजिंग का असली नाम नामग्याल वांगदी था, जिसे रोंगबुक मठ के प्रमुख लामा न्गावांग तेनजिन नोर्बु ने बदलकर ‘तेनजिंग नोर्गे’ रखा, जिसका अर्थ है ‘धनवान, सौभाग्यशाली और धर्म का अनुयायी।’ उनके पिता घंग ला मिंगमा तिब्बती याक चरवाहे थे, और मां डोकमो किनजोम भी तिब्बती थीं। 13 भाई-बहनों में 11वें नंबर पर जन्मे तेनजिंग के कई भाई-बहन कम उम्र में ही चल बसे।
किशोरावस्था में तेनजिंग 2 बार घर से भागे। पहले काठमांडू और फिर दार्जिलिंग, जो उस वक्त हिमालयी अभियानों का गढ़ था। 19 साल की उम्र में उन्होंने दार्जिलिंग के तू सोंग बस्ती में शेरपा समुदाय में अपना ठिकाना बनाया और बाद में भारतीय नागरिकता हासिल की। तेंगबोचे मठ में भिक्षु बनने की कोशिश भी की, लेकिन उनका दिल पहाड़ों की चोटियों पर ज्यादा रमा।
1890 के इस नक्शे में एवरेस्ट (गौरीशंकर) नजर आ रहा है।
पर्वतारोहण की दुनिया में कैसे पड़े कदम?
तेनजिंग की पर्वतारोहण की दुनिया में शुरुआत 1935 में हुई, जब 20 साल की उम्र में उन्हें एरिक शिप्टन के नेतृत्व में ब्रिटिश माउंट एवरेस्ट रिकॉर्डिंग अभियान में शामिल होने का मौका मिला। उनकी जिंदादिल मुस्कान और दोस्त अंग थार्के की सिफारिश ने उन्हें यह मौका दिलाया। इसके बाद, 1930 के दशक में वह तिब्बत की ओर से 3 ब्रिटिश एवरेस्ट अभियानों में ऊंचाई वाले कुली के तौर पर शामिल हुए।
1940 के दशक में तेनजिंग ने चित्राल (अब पाकिस्तान) में मेजर चैपमैन के लिए ‘बैटमैन’ के रूप में काम किया। उनकी पहली पत्नी दावा फुटी की मृत्यु यहीं हुई। 1947 में भारत के विभाजन के दौरान, वह अपनी दो बेटियों, पेम पेम और निमा के साथ दार्जिलिंग लौटे। इस दौरान, उन्होंने मेजर चैपमैन की पुरानी वर्दी पहनकर बिना टिकट ट्रेन से यात्रा की। तेनजिंग ऐसी बेबाक हरकतें करते रहते थे।
1947 में तेनजिंग एक असफल एवरेस्ट अभियान का हिस्सा बने, जहां तूफान के कारण उन्हें 22,000 फीट से वापस लौटना पड़ा। उसी साल, उन्होंने स्विस अभियान के सरदार वांगदी नोर्बु को बचाया और गढ़वाल हिमालय में केदारनाथ की चोटी (22,769 फीट) पर चढ़ाई की। 1951 में, वह ब्रिटिश एवरेस्ट रिकॉर्डिंग अभियान में शामिल हुए, जिसने उनके लिए बड़े मंच की नींव रखी।
…और एवरेस्ट पर पड़ ही गए कदम
1952 में, तेनजिंग ने स्विस अभियानों में हिस्सा लिया, जो नेपाल के दक्षिणी मार्ग से एवरेस्ट पर चढ़ने (Everest Expedition) की पहली गंभीर कोशिश थी। मई 1952 में, तेनजिंग और रेमंड लैम्बर्ट ने 8,595 मीटर (28,199 फीट) की ऊंचाई तक पहुंचकर उस समय का सबसे ऊंचा चढ़ाई रिकॉर्ड बनाया। इस अभियान ने एवरेस्ट के लिए एक नया मार्ग खोला और तेनजिंग को पहली बार पूर्ण अभियान सदस्य के रूप में मान्यता मिली। उनकी दोस्ती लैम्बर्ट के साथ इतनी गहरी हुई कि यह जीवनभर कायम रही।
1953 में, जॉन हंट के नेतृत्व में ब्रिटिश अभियान ने तेनजिंग को एक नया मौका दिया। 362 कुली, 20 शेरपा गाइड और 10,000 पाउंड सामान के साथ यह अभियान एक बड़ी कोशिश थी। अभियान के दौरान, हिलेरी एक हिम दरार में गिर गए, लेकिन तेनजिंग ने अपनी बर्फ की कुल्हाड़ी से रस्सी पकड़कर उनकी जान बचाई। इस घटना ने हिलेरी का भरोसा तेनजिंग पर और मजबूत किया।
26 मई को, टॉम बोर्डिलन और चार्ल्स इवांस ने चोटी तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन ऑक्सीजन सिस्टम की खराबी के कारण 300 फीट नीचे से लौट आए। इसके बाद, हंट ने तेनजिंग और हिलेरी को अंतिम चढ़ाई का जिम्मा सौंपा। 28 मई को, बर्फीले तूफान के बीच साउथ कोल पर दो दिन रुकने के बाद, उन्होंने 27,900 फीट पर टेंट लगाया। 29 मई 1953 को सुबह 11:30 बजे, तेनजिंग और हिलेरी ने 8,848 मीटर ऊंचे एवरेस्ट के शिखर पर कदम रखा।
हिलेरी ने तेनजिंग की वह ऐतिहासिक तस्वीर खींची, जिसमें वह अपनी बर्फ की कुल्हाड़ी के साथ खड़े हैं। तेनजिंग ने बाद में अपनी आत्मकथा में खुलासा किया कि हिलेरी पहले शिखर पर पहुंचे, और वह उनके ठीक बाद। यह साझा जीत थी, जिसने दोनों को दुनिया भर में मशहूर कर दिया।
माउंट एवरेस्ट पर एक छोटे से हिमस्खलन का दृश्य।
29 मई को मनाया जाने लगा इंटरनेशनल एवरेस्ट डे
29 मई को हर साल इंटरनेशनल एवरेस्ट डे के रूप में मनाया जाता है, जो तेनजिंग और हिलेरी की इस ऐतिहासिक उपलब्धि को श्रद्धांजलि देता है। यह दिन न केवल पर्वतारोहण की दुनिया में मानव की हिम्मत और जुनून को सेलिब्रेट करता है, बल्कि शेरपा समुदाय के अतुलनीय योगदान को भी रेखांकित करता है। इस दिन दुनिया भर में साहसिक आयोजन, सेमिनार और ट्रेकिंग अभियान आयोजित होते हैं, जो नई पीढ़ी को प्रेरित करते हैं कि कोई भी मंजिल असंभव नहीं, अगर दिल में जज्बा और हौसला हो।
एवरेस्ट की चढ़ाई के बाद मिली बेपनाह इज्जत
एवरेस्ट की चढ़ाई के बाद, तेनजिंग को भारत और नेपाल में बेपनाह इज्जत मिली। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने हिलेरी और हंट को नाइट की उपाधि दी, लेकिन तेनजिंग को जॉर्ज मेडल से सम्मानित किया गया। कई लोगों का मानना है कि उन्हें भी नाइट की उपाधि मिलनी चाहिए थी। नेपाल के राजा त्रिभुवन ने उन्हें ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ नेपाल से नवाजा, और भारत सरकार ने 1959 में पद्म भूषण दिया। 1963 में, सोवियत संघ ने उन्हें ‘मेरिटेड मास्टर ऑफ स्पोर्ट ऑफ द USSR’ की मानद उपाधि दी, जो किसी विदेशी को पहली बार मिली।
1954 में, तेनजिंग दार्जिलिंग में हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट के पहले फील्ड ट्रेनिंग डायरेक्टर बने। 1978 में, उन्होंने तेनजिंग नोर्गे एडवेंचर्स की स्थापना की, जो आज उनके बेटे जामलिंग चलाते हैं। 2003 में, भारत सरकार ने उनके सम्मान में सर्वोच्च एडवेंटर स्पोर्ट्स पुरस्कार का नाम तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड रखा। नेपाल में तेनजिंग पीक, प्लूटो पर तेनजिंग मॉन्टेस, और लुक्ला का तेनजिंग-हिलेरी हवाई अड्डा उनकी अमर विरासत के प्रतीक हैं।
जानें, कैसा था तेनजिंग का पारिवारिक जीवन
तेनजिंग की तीन शादियां हुईं। उनकी पहली पत्नी दावा फुटी की 1944 में मृत्यु हो गई, जिनसे उनकी दो बेटियां, पेम पेम और निमा और एक बेटा निमा दोर्जे था, जो 4 साल की उम्र में चल बसा। दूसरी पत्नी अंग लाहमु उनकी पहली पत्नी की चचेरी बहन थीं। तीसरी पत्नी दक्कू से उनके 3 बेटे, नोर्बु, जामलिंग, और धमे और एक बेटी डेकी हुईं। जामलिंग ने 1996 में एवरेस्ट फतह की, और उनके पोते ताशी तेनजिंग ने भी इस विरासत को आगे बढ़ाया।
मिसाल बन गई तेनजिंग की जिंदगी
9 मई 1986 को तेनजिंग का निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट में किया गया, जो उनकी जिंदगी का पसंदीदा ठिकाना था। उनकी पत्नी दक्कू का निधन 1992 में हुआ। शेरपा तेनजिंग नोर्गे की जिंदगी एक ऐसी मिसाल है, जो हमें सिखाती है कि सपने कितने भी ऊंचे हों, मेहनत और हिम्मत से उन्हें छुआ जा सकता है। एक साधारण कुली से लेकर एवरेस्ट के शिखर तक का उनका सफर न केवल शेरपा समुदाय की शान है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा है।
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