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4 मिनट पहले
ईरान के इस्लामिक रिवॉल्युशनरी गार्ड कोर यानी आईआरजीसी के सीनियर जनरल और ईरानी नेशनल सिक्यॉरिटी काउंसिल के सदस्य मोहसिन रेज़ाएई का सोशल मीडिया पर एक वीडियो क्लिप वायरल हो रहा था.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि मोहसिन ने ये बातें ईरान के सरकारी टीवी को दिए इंटरव्यू में कही थीं.
पाकिस्तान इसराइली हमले की निंदा तो कर रहा है लेकिन ईरान के लिए परमाणु हथियार के इस्तेमाल की बात सार्वजनिक रूप से नहीं कही थी. सोमवार को पाकिस्तान की संसद में विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने जनरल मोहसिन के वीडियो क्लिप का जवाब दिया.
इसहाक़ डार ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में कहा, ”यह बिल्कुल ही ग़ैर-ज़िम्मेदाराना और झूठी ख़बर है. अल्लाह ताला ने पाकिस्तान को परमाणु शक्ति संपन्न बनाया है और इसे लेकर दुनिया के कई मुल्कों को तकलीफ़ भी होती है.”
”लेकिन ये शक्ति हमारी अपनी सुरक्षा और स्थिरता के लिए है. 9/11 के बाद दोनों फ़ौजें आमने-सामने खड़ी रहीं, भारत को तो मौक़ा चाहिए. अगर हमारे पास ये ताक़त ना होती तो पता नहीं उस वक़्त क्या हो जाता. मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि हमारी तरफ़ से ऐसा कोई बयान नहीं दिया गया है कि हम इसराइल के ख़िलाफ़ परमाणु हथियार का इस्तेमाल करेंगे.”
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14 जून को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने नेशनल असेंबली में इसराइल के ख़िलाफ़ मुस्लिम एकता की अपील की थी.
ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा था, ”हम ईरान के साथ खड़े हैं और हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर ईरान के हितों की रक्षा के लिए उसका समर्थन करेंगे. इसराइल ने ईरान, यमन और फ़लस्तीन को टारगेट किया है. अगर मुस्लिम देश एकजुट नहीं हुए तो हम सभी को ऐसे हमलों का सामना करना होगा. मैं सभी मुस्लिम देशों से इसराइल से संबंध तोड़ने की अपील करता हूँ. ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन को आपातकालीन सत्र बुलाकर संयुक्त रणनीति तैयार करनी चाहिए.”
पाकिस्तान के नेता भले ही ईरान को समर्थन देने की बात कर रहे हैं लेकिन सोमवार को ख़बर आई कि पाकिस्तान ने ईरान से लगी अपनी सीमा को बंद कर दिया है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी से पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के एक सीनियर अधिकारी क़ादिर बख़्श पिरकानी ने कहा, ”सभी पाँच ज़िले चाग़ी, वाशुक, पंजगुर, केच और ग्वादर से ईरान और पाकिस्तान के बीच आवाजाही को निलंबित कर दिया गया है.”
पाकिस्तान भले अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ईरान के समर्थन में बोल दे लेकिन सैन्य मदद करने फ़ैसला इतना आसान नहीं होगा.
साल 2015 में सऊदी अरब के कहने पर भी पाकिस्तान ने यमन में अपनी सेना भेजने से इनकार कर दिया था जबकि सऊदी अरब की पाकिस्तान से ऐतिहासिक क़रीबी रही है. इसराइल तो अमेरिका का रणनीतिक पार्टनर है, ऐसे में पाकिस्तान शायद ही अमेरिका के ख़िलाफ़ जाना चाहेगा.
पाकिस्तान और ईरान, कितने पास कितने दूर

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पाकिस्तान-ईरान पड़ोसी मुल्क हैं और दोनों के बीच 750 किलोमीटर लंबी सरहद है. पाकिस्तान सुन्नी बहुल इस्लामिक देश है और ईरान शिया बहुल.
पड़ोसी होने के बावजूद दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे नहीं रहे हैं. सीमा पर दोनों देश आपस में भिड़ते भी रहते हैं. दरअसल पाकिस्तान ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब का पार्टनर रहा है. सऊदी अरब और ईरान लंबे समय तक प्रतिद्वंद्वी रहे हैं.
द इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज़ ने अपने एक पेपर में लिखा है, ”1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद पाकिस्तान से संबंधों पर सीधा असर पड़ा. इस क्रांति के बाद ईरान की सत्ता शिया केंद्रित हो गई. यानी पारंपरिक शिया तौर-तरीक़ों का ज़ोर बढ़ा. इस तरह दोनों देशों के बीच इस्लाम एक विभाजनकारी मुद्दा बन गया.”
”1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग हुआ और 1977 में मोहम्मद ज़िया-उल-हक़ के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान की राष्ट्रीय पहचान में इस्लाम का ज़ोर बढ़ा. समय के साथ पाकिस्तान में इस्लाम की सुन्नी पहचान केंद्र में आ गई. दूसरी तरफ़ ईरान में शिया पहचान को लेकर ज़ोर था. ईरान न केवल अपने घर में इस पहचान को लेकर मुखर रहा बल्कि देश से बाहर भी शियाओं की सुरक्षा को लेकर सक्रिय हो गया. दूसरी तरफ़ ईरान 1979 के बाद अमेरिका से दूर हुआ और पाकिस्तान की क़रीबी बढ़ती गई.”
1979 में ही सोवियत यूनियन ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया था. पाकिस्तान में सुन्नी मुस्लिम पहचान के ज़ोर पकड़ने से उसकी क़रीबी सऊदी अरब से बढ़ी.
द इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटिजिक स्टडीज़ के मुताबिक इसके बाद सऊदी अरब ने भी पाकिस्तान में वहाबी इस्लाम को मदरसों और अन्य ज़रियों से प्रोत्साहन देना शुरू किया. सऊदी अरब की सुरक्षा में पाकिस्तानी आर्मी की भागीदारी रही है और इसके बदले में पाकिस्तान को सऊदी से आर्थिक मदद मिलती रही.
पाकिस्तान मुस्लिम देशों में इकलौता परमाणु शक्ति संपन्न देश है. पाकिस्तान पर जब परमाणु परीक्षण के बाद प्रतिबंध लगा था तो सऊदी अरब ने आर्थिक मदद की थी. लेकिन पिछले एक दशक में सऊदी अरब ने अपने संबंधों में पाकिस्तान की मौजूदगी को कम किया है. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान ने भी 2015 में सऊदी अरब की उस मांग को नकार दिया था, जिसमें उसने यमन में हूती विद्रोहियों से जंग में शामिल होने की अपील की थी.
साल 1980 के दशक में अमेरिका और सऊदी अरब ने सोवियत यूनियन के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के ज़रिए अफ़ग़ान मुजाहिदीन समूहों की मदद शुरू की थी. बाद में इन्हीं समूहों से अफ़ग़ान तालिबान और अल-क़ायदा का उभार हुआ था.
आईआईएसएस ने अपने पेपर में लिखा है, ”इसके जवाब में ईरान ने इराक़ के साथ जंग में शिया अफ़ग़ानों की भर्तियां शुरू की थीं. अफ़ग़ानिस्तान में ईरान के रणनीतिक हितों को भारत से जोड़कर देखा जाता है और इससे पाकिस्तान को ईरान को लेकर अविश्वास बढ़ता है.”
पिछले साल जनवरी में ही ईरान और पाकिस्तान ने एक दूसरे के इलाक़े में हमले किए थे. दोनों एक दूसरे पर सीमा पार आतंकवादी समूहों को समर्थन देने का आरोप लगाते हैं.
पाकिस्तान और इसराइल

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2020 में यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इसराइल से राजनयिक संबंध कायम करने का फ़ैसला किया था. इससे पहले मिस्र ने 1979 में जॉर्डन ने 1994 में इसराइल से औचपारिक संबंध कायम किए थे. लेकिन पाकिस्तान का इसराइल से कोई विवाद या संघर्ष नहीं रहा है, तब भी उसने इसराइल को एक राष्ट्र के रूप में स्वीकार नहीं किया है. पाकिस्तान ऐसा अरब के देशों के साथ इस्लामिक एकता दिखाने के लिए करता है.
लेकिन जब अरब के देश ही इसराइल के क़रीब जाने लगे तो पाकिस्तान को इसराइल के साथ संबंध कायम करने में क्या दिक़्क़त है?
इसका जवाब 2020 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने दिया था. इमरान ख़ान ने कहा था, ”बाक़ी देश चाहे जो भी करें, हमारा रुख़ स्पष्ट है. मोहम्मद अली जिन्ना ने 1948 में कहा था- जब तक फ़लस्तीनियों को उनका अधिकार नहीं मिल जाता, तब तक इसराइल को हम स्वीकार नहीं कर सकते.”
कई लोग इस बात की वकालत करते हैं कि अगर पाकिस्तान इसराइल को मान्यता देता है तो अमेरिका से उसके संबंध अच्छे हो सकते हैं. लेकिन पाकिस्तान के आम लोगों की इसराइल विरोधी भावना आए दिनों सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन के रूप में दिखती है.
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने कहा था कि अगर इसराइल और फ़लस्तीन किसी शांति समझौते पर पहुँच जाते हैं तो इसराइल के साथ राजनयिक संबंध कायम करने में कोई दिक़्क़त नहीं है.
2005 में पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री ख़ुर्शीद कसूरी और इसराइल के तत्कालीन विदेश मंत्री सिलवान शालोम की इस्तांबुल में मुलाक़ात हुई थी. कहा जाता है कि यह मुलाक़ात अर्दोआन ने करवाई थी. पाकिस्तान में इस मुलाक़ात को लेकर काफ़ी हंगामा हुआ था.
सिलवान शालोम ने ख़ुर्शीद कसूरी से मुलाक़ात के बाद कहा था, ”हमारी बातचीत काफ़ी अहम है. यह बातचीत न केवल पाकिस्तान से हमारे संबंधों के लिए मायने रखती है बल्कि पूरी मुस्लिम दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है. अरब के सभी मुस्लिम देशों के साथ हम पाकिस्तान से भी राजनयिक संबंध चाहते हैं.”
पाकिस्तान में इसराइल को दुश्मन के रूप में भले देखा जाता है लेकिन इसराइल में पाकिस्तान को लेकर सड़कों पर इस तरह का ग़ुस्सा देखने को नहीं मिलता है. 2018 में इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू भारत के दौरे पर आए थे.
इस दौरे में नेतन्याहू ने कहा था, ”इसराइल पाकिस्तान का दुश्मन नहीं है और पाकिस्तान को भी हमारा दुश्मन नहीं होना चाहिए.”
इसके बाद पाकिस्तान में दबे स्वर में इसराइल को लेकर फिर से विचार करने की बात कही गई लेकिन पाकिस्तानी सीनेट के तत्कालीन चेयरमैन रज़ा रब्बानी ने मुस्लिम वर्ल्ड को चेतावनी देते हुए कहा था, ‘भारत, इसराइल और अमेरिका के बीच उभरता गठजोड़ मुस्लिम दुनिया के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है.’
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SOURCE : BBC NEWS