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2 घंटे पहले
बीते मंगलवार को संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी ने सिविल सेवा परीक्षा के फ़ाइनल रिज़ल्ट की घोषणा की थी.
इस रिज़ल्ट के मुताबिक़ यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2024 में शक्ति दुबे ने टॉप किया है.
ख़ास बात यह है कि इस बार के रिज़ल्ट में टॉप पांच में तीन महिलाएं हैं. यूपीएससी सिविल सेवा में इस बार कुल 1009 परीक्षार्थी सफल हुए हैं, जिनमें 725 पुरुष और 284 महिलाएं हैं.
आइये हम आपको बताते हैं यूपीएससी 2013 की परीक्षा के उस टॉपर के बारे में जो आईआईटी, आईआईएम और हांगकांग में नौकरी के बाद आईएएस बने.
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स्थान: जोधपुर स्टेडियम
एक शख़्स अपने बल्ले से बहुत ज़ोर से पेशेवर गेंदबाज़ों की गेंद पर प्रहार कर रहा है. कभी चौका तो कभी छक्का और परिणाम 54 गेंदों पर नाबाद 105 रन.
यह खेल किसी पेशेवर क्रिकेटर का नहीं बल्कि जोधपुर के कलेक्टर गौरव अग्रवाल का है. वह शख़्स जिसने अपनी ज़िंदगी की पिच पर कभी हार नहीं मानी.
17 साल की उम्र में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा 45वीं रैंक से पास की तो उम्र की नज़ाकत में थोड़ी ख़ुमारी चढ़ी लेकिन सेमेस्टर के झटकों ने इसे जल्द ही उतार भी दिया. इसके बाद गौरव अग्रवाल ने फिर कभी अपनी ज़िंदगी में कोई भी लूज़ बॉल्स नहीं खेली.
आईआईटी कानपुर से निकलने के बाद आईआईएम लखनऊ में गोल्ड मेडल हासिल किया और फिर यूपीएससी भी टॉप किया. अब वे क्रिकेट से लेकर प्रशासन की पिच तक हर जगह नाबाद हैं.
‘आईआईटी एडमिशन के बाद अहंकार आ गया था’

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गौरव अग्रवाल कहते हैं, “मैं पढ़ने में शुरू से अच्छा था. एक सामान्य परिवार के छात्र की तरह ही मैंने भी इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए कोचिंग ली. पहली बार में ही आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में मेरी 45वीं रैंक आ गई. फिर मैं आईआईटी कानपुर पहुंच गया.”
वो बताते हैं कि ‘यह सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन मेरे अंदर कुछ एरोगेंस आ गया था कि मैं तेज़ हूं मेरी 45वीं रैंक आई है. मैं तो कुछ कर लूंगा. इसका परिणाम यह हुआ कि दूसरे और तीसरे सेमेस्टर में ही गड़बड़ शुरू हो गई.’
वो बताते हैं कि आईआईटी कानपुर में कंप्यूटर साइंस की डिग्री में उनका सीजीपीए ख़राब हो गया.
अग्रवाल ने बताया कि वे एक सेमेस्टर में फे़ल भी हो गए थे जिसके कारण वे अपने बैच के छात्रों से एक सेमेस्टर पीछे भी चले गए थे.
वो बताते हैं, “इसके बाद तो मेरा आत्मविश्वास बुरी तरह से हिल गया. मैंने यूपीएससी के लिए पहले सोच रखा था लेकिन फिर हिम्मत नहीं हुई.”
‘सीजीपीए अच्छा होता तो एमएनसी में नौकरी कर रहा होता’

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वे बताते हैं कि आईआईटी कानपुर में उनका सीजीपीए ख़राब हो गया था.
अग्रवाल बताते हैं, “अगर सीजीपीए अच्छा होता तो मैं भी किसी एमएनसी में नौकरी कर रहा होता. ज़िंदगी सबको एक मौका और देती है बस उसके लिए आपको तैयार रहना होता है और उस मौके के लिए निरंतर मेहनत करनी होती है.”
वे कहते हैं, “सीजीपीए ठीक नहीं था तो आईआईटी के बाद मैंने आईआईएम में प्रवेश के लिए कैट की परीक्षा दे दी. उस समय आईआईटी के बाद आईआईएम एक बेहतर कॉम्बिनेशन माना जा रहा था.”
“मैंने इसे पास कर लिया और मुझे आईआईएम लखनऊ में एडमिशन मिल गया. इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और न ही आईआईटी वाली ग़लती दोहराई.”
“आईआईएम के हर सेमेस्टर में अच्छी पढ़ाई की और फिर आईआईएम लखनऊ टॉप करते हुए गोल्ड मेडल हासिल किया.”
फिर जगा यूपीएससी का प्रेम

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आईआईएम टॉप करने के बाद दुनिया की बेहतरीन कंपनी सिटी ग्रुप, हांगकांग में नौकरी करने का ऑफर मिला.
वे कहते हैं, “इसके लिए जब मैं इंटरव्यू दे रहा था तो दिमाग में कुछ ऐसा बैठा हुआ था कि मैंने इंटरव्यू लेने वालों को कह दिया कि मैं ज़्यादा से ज़्यादा तीन से चार साल में वापस चला जाऊंगा.”
“खैर, नौकरी शुरू हुई और मैं वहां फाइनेंशियल मार्केट देख रहा था. इसको सरकार की नीतियां बहुत ही प्रभावित करती हैं. एक बार फिर मैं वहीं आ गया जहां नीतियों का असर होता है.”
“ऐसे में यूपीएससी देने का जो ख़्वाब दबा हुआ था. वो ख़्वाब, जो आईआईटी में ख़राब सीजीपीए के कारण हिल गया था वह फिर से उभर आया.”
हांगकांग में ही शुरू की तैयारी

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इसके बाद गौरव अग्रवाल ने यूपीएससी को लेकर तैयारी करना शुरू कर दिया.
तैयारी करते वक्त जब गौरव को लगा कि अब इसमें पूरी तरह से समय देना है तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी और भारत वापस आ गए.
वे बताते हैं, “कोचिंग के लिए एक दो जगहों पर दाखिला लिया लेकिन उनकी घिसी-पिटी तैयारी का तरीका मुझे रास नहीं आया और फिर मैंने खुद से ही तैयारी की.”
अग्रवाल के मुताबिक पहली बार 2012 में परीक्षा दी तो उनकी 244वीं रैंक आई और उन्हें आईपीएस कैडर मिला.
वे कहते हैं, “मुझे नीतियों में ज़्यादा दिलचस्पी थी तो मन मेरा आईएएस की तरफ ही आकर्षित था.”
“एक बार फिर से 2013 में परीक्षा दी और फिर जो परिणाम आया उसने मेरे उस ख़्वाब को पूरा किया जो कि आईआईटी की 45वीं रैंक की खुमारी के कारण से भटक गया था.”
उन्होंने इस बार यूपीएससी टॉप किया था. वे बताते हैं कि जिस तरह क्रिकेटर सौरव गांगुली ने अपनी टीम को लड़ना सिखाया था, कैरी ऑन करना सिखाया था, मैंने भी कैरी ऑन करना सीख लिया था.
पहली बार देश में एआई ने जांची परीक्षा की कापियां

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यूपीएससी टॉप करने के बाद गौरव अग्रवाल को पोस्टिंग अपने गृह राज्य में ही मिली. वह यूपीएससी टॉप करने वाले राजस्थान के पहले व्यक्ति थे.
गौरव की आईआईटी और आईआईएम में पढ़ाई का लाभ भी राज्य को मिलने लगा.
उन्हें जब माध्यमिक शिक्षा का निदेशक बनाया गया तो उन्होंने पहली बार एक से आठवीं तक की कॉपियों के लिए पेपर बनाने से लेकर जांच करने का काम एआई से कराने का फै़सला किया.
गौरव बताते हैं, “राजस्थान में करीब 65 हज़ार स्कूल हैं और सबके पेपर अलग सेट हो रहे थे और इनकी जांच भी अलग हो रही थी. ऐसे में छात्रों की क्षमता का सही पता नहीं चल पा रहा था.”
इस काम में ज़्यादा मेहनत भी लग रही थी और परिणाम भी अच्छा नहीं था. इसे देखते हुए एक प्रोग्राम तैयार किया गया और पेपर एक ही जगह से सेट करके सभी को भेज दिया गया.
परीक्षा के बाद सभी शिक्षकों को सिर्फ इतना करना होता था कि उस उत्तर पुस्तिका की फोटो खींच कर प्रोग्राम में भेजना होता था और इसके बाद एआई कॉपी की जांच कर देता था. एक बार में एआई के माध्यम से डेढ़ करोड़ कापियों की जांच हो जाती है.
वह बताते हैं कि इस प्रणाली से फायदा यह हुआ कि कौन सा छात्र किस विषय के किस स्तर पर कमज़ोर या फिर ताकतवर है यह भी पता चल गया. इसके अनुसार पढ़ाई के लिए पुस्तिका तक के पैटर्न में बदलाव किया गया.
हालांकि शिक्षकों की ट्रांसफर, पोस्टिंग और पदोन्नति को लेकर किया गया एक तकनीकी बदलाव उनके एपीओ होने का कारण भी बना और उसके कारण उन्हें निदेशक के पद से हटा भी दिया गया.
गौरव अग्रवाल कहते हैं, “ज़िंदगी का सफर अगर आसान रखना है तो कुर्सी को ज़्यादा दिल से नहीं लगाना चाहिए.”
शिक्षा विभाग से निकलकर गौरव अग्रवाल कृषि विभाग में पहुंचे. यहां फिर से वह आमजन की समस्या को तकनीक से सुधारने के काम में जुट जाते हैं.
किसान कॉल सेंटर जहां सालभर में करीब 70 लाख कॉल कृषि की तमाम जानकारियों के लिए आती हैं. उन्होंने इसे सुधारने का काम शुरू किया.
इसके बाद पूरे सिस्टम का ऑटोमेशन कर हुआ और अब किसानों को बहुत आसानी से तमाम सवालों के जवाब मिल रहे हैं.
‘यह 100 मीटर की रेस नहीं, मैराथन है’

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परीक्षाओं की तैयारी कैसे की जाए? इसे लेकर क्या रणनीति अपनाई जानी चाहिए?
गौरव अग्रवाल कहते हैं, “कोई भी बड़ी परीक्षा 100 मीटर रेस की तरह नहीं होती हैं. यह मैराथन होती है. यह निरंतर अभ्यास, मेहनत और धैर्य मांगती है. जो भी शख्स निरंतरता बनाए रखता है, उसे निश्चित रूप से ही सफलता मिलती है.”
यूपीएससी, आईआईएम या आईआईटी, कोई भी परीक्षा हो. इसमें परिवार का बड़ा योगदान होता है.
तैयारी के दौरान कई बार ध्यान भटकता है. धैर्य खोता है इस दौरान परिवार से बेहतर बातचीत उसे संयमित करने का काम करती है.
वह कहते हैं, “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दौरान आपको स्वस्थ रहना होता है और मानसिक रूप से चुस्त रहना होता है. ऐसे में कोई एक व्यायाम और योग व्यक्ति को ज़रूर करना चाहिए. इससे आपको बहुत ही राहत और ताकत मिलेगी. मैं अपनी तैयारी के दौरान हमेशा दौड़ लगाता था.”
वह एक बात और कहते हैं, जिसे किसी भी परीक्षा की तैयारी करने वाले को ध्यान में रखना चाहिए वह यह कि ये परीक्षाएं रटकर देने वाली नहीं होती हैं.
“रट्टा मारने का काम कंप्यूटर का होता है. ये परीक्षाएं आपके सोचने की क्षमता की आंकलन करने के लिए होती हैं. ऐसे में विषयों को रट्टा मारने के बजाय समझकर लिखें.”
गौरव अग्रवाल कहते हैं, “ज़िंदगी में हमेशा एक ही दौर नहीं रहता है. ऐसे में जब आप का दौर निचले स्तर पर चल रहा हो तो भरोसे के साथ और मेहनत करनी चाहिए और फिर दौर आपका होगा.”
यही वजह है कि बढ़िया प्रशासनिक पारी खेल रहे कलेक्टर गौरव अग्रवाल क्रिकेट में बढ़िया पारी खेलने के लिए आजकल जोधपुर के जिम में पसीना बहाते हुए देखे जा सकते हैं.
वह कहते हैं कि ज़िंदगी में खेल कोई भी हो शारीरिक और मानसिक मज़बूती राह आसान कर देती है.
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SOURCE : BBC NEWS