Source :- BBC INDIA

इमेज स्रोत, REUTERS/Aly Song
आपके पास जो आईफ़ोन पहुंचता है, उसके साथ एक लेबल लगा होता है जो बताता है कि इसे अमेरिका के कैलिफोर्निया में डिज़ाइन किया गया था.
भले ही आईफ़ोन को अमेरिका में डिज़ाइन किया गया हो, लेकिन ज़्यादा संभावना यही है कि आमतौर पर लोगों के पास मौजूद आईफ़ोन का निर्माण वहां से हज़ारों मील दूर चीन में हुआ होगा.
वह देश जो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित है. कुछ चीनी आयातों पर यह टैरिफ़ अब 245 फ़ीसदी तक बढ़ गया है.
एप्पल हर साल 22 करोड़ से ज़्यादा आईफ़ोन बेचता है और ज़्यादातर अनुमानों के मुताबिक़ हर दस में से नौ आईफ़ोन चीन में बनते हैं.

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

आकर्षक स्क्रीन से लेकर बैटरी तक, एप्पल के प्रोडक्ट के कई पार्ट्स यहीं बनते हैं. आईफ़ोन हो, आईपैड हो या फिर मैकबुक, ये चीन में ही असेंबल किए जाते हैं.
इनमें से ज़्यादातर आईफ़ोन को यहां से एप्पल के सबसे बड़े बाज़ार अमेरिका भेजा जाता है.
कंपनी के लिए किस्मत से यह बात अच्छी रही कि ट्रंप ने पिछले सप्ताह अचानक स्मार्टफ़ोन, कंप्यूटर और कुछ अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान को टैरिफ़ से छूट दे दी है.
हालांकि यह राहत स्थाई नहीं है. राष्ट्रपति ट्रंप ने यह संकेत दिया है कि वो और ज़्यादा टैरिफ़ लगाएंगे.
उन्होंने ट्रुथ सोशल पर लिखा, “कोई भी इससे बच नहीं पाएगा”, क्योंकि उनका प्रशासन “सेमीकंडक्टर और पूरे इलेक्ट्रॉनिक्स सप्लाई चेन” की जांच कर रहा है.
दुनियाभर में अपने सप्लाई चेन को एप्पल अपनी ताकत बताता रहा है, लेकिन यह अब यह उसके लिए संकट बन गया है.
दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था- अमेरिका और चीन, कई मामलों में एक-दूसरे पर निर्भर हैं. लेकिन ट्रंप के चौंका देने वाले टैरिफ़ वॉर ने रातोंरात इस रिश्ते को बिगाड़ दिया है.
इससे एक सवाल यह भी उठता है कि दोनों देशों में सामने वाले देश पर कौन ज़्यादा निर्भर है?
जीवन रेखा कैसे बन गई ख़तरा?

इमेज स्रोत, Getty Images
चीन को दुनिया की सबसे ख़ास कंपनियों में से एक (एप्पल) के लिए उत्पादन करने का बड़ा लाभ मिला है.
अच्छी क्वालिटी के निर्माण के लिए चीन पश्चिमी देशों के लिए एक कॉलिंग कार्ड की तरह था और इसने स्थानीय स्तर पर नए प्रयोग को बढ़ावा देने में मदद की.
एप्पल ने 1990 के दशक में तीसरे पक्ष के सप्लायर्स के ज़रिए से कंप्यूटर बेचने के लिए चीन के बाज़ार में प्रवेश किया.
साल 1997 के आसपास, जब यह अन्य कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के संघर्ष में दिवालिया होने की कगार पर था, तब एप्पल को चीन में नया जीवन मिला.
इस दौर में चीनी अर्थव्यवस्था मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और अधिक नौकरियां पैदा करने के लिए विदेशी कंपनियों के लिए खुल रही थी.
साल 2001 में एप्पल आधिकारिक तौर पर शंघाई स्थित एक व्यापारिक कंपनी के माध्यम से चीन में आया और उसने देश में सामान बनाना शुरू कर दिया था.
इसने चीन में मौजूद ताइवान की इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली कंपनी फॉक्सकॉन के साथ साझेदारी की, जिसके तहत उसने आईपॉड, फिर आईमैक और उसके बाद आईफ़ोन बनाए.
जैसे ही चीन ने दुनियाभर के देशों के साथ व्यापार करना शुरू किया, जिसमें अमेरिका का भी समर्थन था – एप्पल ने चीन में अपनी मौजूदगी बढ़ा दी, जो अब दुनिया का कारखाना, यानी उत्पादन का केंद्र बनता जा रहा था.

इमेज स्रोत, Getty Images
उस समय चीन आईफ़ोन बनाने के लिए तैयार नहीं था. लेकिन सप्लाई चेन विशेषज्ञ लिन शुएपिंग के मुताबिक़ एप्पल ने अपने अलग सप्लायर्स चुने और उन्हें “मैन्युफैक्चरिंग सुपरस्टार” बनने में मदद की.
वे बीजिंग जिंगडियाओ का उदाहरण देते हैं, जो अब मशीनरी बनाने वाली अग्रणी निर्माता कंपनी है, जिसका इस्तेमाल आधुनिक पार्ट्स के बेहतरीन निर्माण के लिए होता है.
लिन कहते हैं, “यह कंपनी, जो ऐक्रेलिक काटती थी उसे मशीन टूल-निर्माता नहीं माना जाता था. लेकिन बाद में इसने कांच काटने के लिए मशीनरी विकसित की और “एप्पल के मोबाइल फ़ोन सरफेस प्रोसेसिंग का स्टार बन गई.”
एप्पल ने चीन में अपना पहला स्टोर साल 2008 में बीजिंग में खोला था. इस साल शहर में ओलंपिक की मेज़बानी हुई थी और चीन का पश्चिमी देशों के साथ रिश्ता अपने सबसे बेहतरीन दौर में था.
जल्द ही चीन में ऐसे स्टोर की संख्या बढ़कर 50 तक पहुँच गई और एप्पल के ग्राहकों की कतारें स्टोर के दरवाज़ों के बाहर तक दिखने लगीं.
जैसे-जैसे एप्पल के फ़ायदे का मार्जिन बढ़ता गया, वैसे-वैसे चीन में इसकी असेंबलिंग की लाइनें (उत्पादन केंद्र) भी बढ़ती गईं.
फ़ॉक्सकॉन ने चीन के ज़ेगज़ू में दुनिया की सबसे बड़ी आईफ़ोन फैक्ट्री बनाई, जिसे तब से “आईफ़ोन सिटी” कहा जाने लगा है.

इमेज स्रोत, Indranil Aditya/NurPhoto via Getty Images
तेज़ी से विकास करते चीन के लिए, एप्पल एक सरल लेकिन आकर्षक आधुनिक पश्चिमी तकनीक का प्रतीक बन गया.
आज एप्पल के ज़्यादातर महंगे आईफ़ोन का निर्माण फ़ॉक्सकॉन करती है. इनके उन्नत चिप का निर्माण ताइवान में दुनिया की सबसे बड़ी चिप निर्माता कंपनी ‘टीएसएमसी’ (ताइवान सेमीकंडक्टर मेनुफैक्चरिंग कंपनी) करती है.
इसे बनाने के लिए दुर्लभ अर्थ एलिमेंट्स की भी ज़रूरत होती है, जिनका इस्तेमाल फ़ोन के ऑडियो इक्विपमेन्ट के लिए और कैमरों में किया जाता है.
निक्केई एशिया के आकलन के मुताबिक़ साल 2024 में एप्पल के शीर्ष 187 में से क़रीब 150 सप्लायर्स की फैक्ट्रियां चीन में थीं.
एप्पल के सीईओ टिम कुक ने पिछले साल एक इंटरव्यू में कहा था, “हमारे लिए दुनिया में कोई भी सप्लाई चेन चीन में मौजूद सप्लाई चेन से ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है. “
कंपनी पर टैरिफ़ का ख़तरा कितना बड़ा?

इमेज स्रोत, Getty Images
ट्रंप के पहले कार्यकाल में जब चीनी उत्पादों पर टैरिफ़ लगाए गए थे तब एप्पल को इससे छूट मिली थी.
लेकिन इस बार ट्रंप प्रशासन ने कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामान पर टैरिफ़ वापस लेने से पहले एप्पल का उदाहरण दिया है.
उनका मानना है कि भारी टैक्स के ख़तरे से कंपनियां अमेरिका में अपना प्रोडक्ट बनाने के लिए कदम उठाएंगीं.
अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने इस महीने की शुरुआत में एक इंटरव्यू में कहा था, “लाखों लोग कतार में बैठे आईफ़ोन बनाने के लिए छोटे-छोटे स्क्रू लगा रहे हैं. इस तरह की चीजें अब अमेरिका में होने वाली हैं.”
वहीं व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने पिछले सप्ताह दोहराया था कि “राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका तकनीक से जुड़े सेमीकंडक्टर, चिप, स्मार्टफ़ोन और लैपटॉप जैसी महत्वपूर्ण चीजों के निर्माण के लिए चीन पर निर्भर नहीं रह सकता है.”
उन्होंने आगे कहा, “राष्ट्रपति के निर्देश पर ये कंपनियां जल्द से जल्द अपना प्रोडक्शन अमेरिका में शुरू करने की कोशिश में लगी हैं.”
लेकिन कई लोग इस दावे पर संदेह जता रहे हैं.

एप्पल के अकादमिक सलाहकार बोर्ड में रह चुके एली फ्रीडमैन के मुताबिक़ एप्पल अपनी असेंब्लिंग को अमेरिका में शिफ़्ट कर सकता है, यह बात “पूरी तरह काल्पनिक” है.
एली फ्रीडमैन 2013 में कंपनी के बोर्ड में शामिल हुए थे. वो कहते हैं, उस वक्त से ही कंपनी चीन के अलावा भी अपने सप्लाई चेन को अन्य देशों ले जाने के बारे में बात कर रही है, लेकिन अमेरिका कभी भी इसका विकल्प नहीं था.
फ्रीडमैन कहते हैं कि एप्पल ने इस पर अगले क़रीब दस साल तक ज़्यादा काम नहीं किया. लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद “वास्तव में इसके लिए कोशिश की”. इसका कारण ये था कि चीन में सख्त लॉकडाउन ने उसके उत्पादन को नुक़सान पहुंचाया था.
उनका कहना है, “असेंबली के लिहाज़ से कंपनी के लिए सबसे महत्वपूर्ण नए स्थान वियतनाम और भारत रहे हैं. लेकिन निश्चित रूप से एप्पल की अधिकांश असेंबली अभी भी चीन में होती है.”
एप्पल ने इस संबंध में बीबीसी के सवालों का जवाब नहीं दिया, लेकिन इसकी वेबसाइट के मुताबिक़ एप्पल का सप्लाई चेन 50 से ज़्यादा देशों में फ़ैला हुआ है.
क्या हैं चुनौतियां?

इमेज स्रोत, Getty Images
एप्पल के मौजूदा सप्लाई चेन में किसी तरह का बदलाव चीन के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, जो कोविड-19 महामारी के बाद से ही विकास को रफ़्तार देने की कोशिश कर रहा है.
2000 के दशक की शुरुआत में पश्चिमी देशों की कंपनियों के लिए मैनुफ़ेक्टरिंग केन्द्र बनने की चाहत रखने वाले चीन के लिए आज भी ऐसी इच्छा रखना एक सत्य है.
इससे लाखों नौकरियां पैदा होती हैं और देश को वैश्विक व्यापार में महत्वपूर्ण फ़ायदा होता है.
सप्लाई चेन और ऑपरेशन्स से जुड़े सलाहकार जिगर दीक्षित कहते हैं, “एप्पल, अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तनाव के बीच खड़ा है और टैरिफ़ उसके सामने संभावित जोखिम को उजागर करते हैं.”
शायद यही वजह है कि चीन ने ट्रंप की धमकियों के आगे घुटने नहीं टेके, बल्कि इसके बदले अमेरिकी आयात पर 125 फ़ीसदी शुल्क लगा दिया.
चीन ने अपने देश में मौजूद कई महत्वपूर्ण दुर्लभ खनिजों और चुम्बकों के निर्यात पर भी नियंत्रण लगा दिया है, जिससे अमेरिका को झटका लगा है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अन्य क्षेत्रों में चीनी उत्पाद पर अभी भी लगाए जा रहे अमेरिकी टैरिफ़ से नुक़सान होगा.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ चीन ही ट्रंप के उच्च टैरिफ़ का सामना कर रहा है. ट्रंप ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे उन देशों को निशाना बनाएंगे जो चीनी सप्लाई चेन का हिस्सा हैं.
मसलन एप्पल ने एयरपॉड्स का उत्पादन वियतनाम में शिफ़्ट किया है. लेकिन ट्रंप के 90 दिनों के लिए रोक लगाने से पहले वह भी 46 फ़ीसदी टैरिफ़ का सामना कर रहा था.
इसलिए एशिया में किसी भी देश में उत्पादन को शिफ़्ट करना उसके लिए आसान रास्ता नहीं है.
फ़्रीडमैन कहते हैं, “हजारों श्रमिकों वाले विशाल फ़ॉक्सकॉन असेंबली सेंटर्स (उत्पादन केंद्रों) के लिए सभी संभावित स्थान एशिया में हैं, और इन सभी देशों को उच्च टैरिफ़ का सामना करना पड़ रहा है.”
अब एप्पल क्या करेगा?

इमेज स्रोत, Getty Images
एप्पल को चीनी कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि चीनी सरकार अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा में उन्नत तकनीकी मैनुफैक्चरिंग पर ज़ोर दे रही है.
लिन के मुताबिक़, “एप्पल ने चीन की इलेक्ट्रॉनिक निर्माण क्षमताओं पोषित किया है. अब ख़्वावे, शाओमी, ओप्पो और अन्य कम्पनियां एप्पल की बेहतरीन सप्लाई चेन का इस्तेमाल कर सकती हैं.”
मौजूदा वक्त में आर्थिक मंदी की वजह से चीन के लोग ने अपना खर्च कम किया है. पिछले साल, एप्पल ने चीन में सबसे बड़े स्मार्टफोन विक्रेता के रूप में अपनी पहचान खो दी है. अब वह ख़्वावे और वीवो से भी पीछे है.
इसके साथ ही चीन में चैटजीपीटी पर भी पाबंदी लगा दी गई है और इससे एप्पल भी एआई-संचालित फ़ोन की इच्छा रखने वाले खरीदारों के बीच अपना फ़ोन बेचने के लिए चुनौतियों का सामना कर रहा है.
कंपनी ने जनवरी महीने में अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए आईफ़ोन पर छूट भी दी थी, जो आमतौर पर चीनी बाज़ार में देखने को नहीं मिलता.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सत्ता में काम करते हुए एप्पल को अपने डिवाइस में ब्लूटूथ और एयरडॉप के इस्तेमाल को भी सीमित करना पड़ा है, क्योंकि चीन में राजनीतिक संदेशों को शेयर करने को लेकर सेंसरशिप करने की कोशिश होती है.
यहां की सरकार ने टेक उद्योग पर एक ऐसी कार्रवाई की जिसने अलीबाबा के संस्थापक और अरबपति कारोबारी जैक मा को भी प्रभावित किया.
प्लेबैक आपके उपकरण पर नहीं हो पा रहा

SOURCE : BBC NEWS